Wednesday, 15 August 2018

एक नोट

आपको पता है 15 अगस्त को क्या हुआ था?
टीचर का यह सवाल ऐसा था जो अब समझ आया. इस सवाल की मंशा जवाब की इच्छा के साथ नहीं थी बल्कि दिमाग में यह बैठा देने या जमा देने की जिद्द के साथ थी कि आपको आज़ादी मिली थी. यह वहम था. क्या सिर्फ अंग्रेजों से ही आज़ादी चाहिए थी? देश को आज़ादी मिली थी. हम अंग्रेजों के गुलाम थे. वो हम पर राज करते थे. हमें बहुत से नेताओं और लोगों ने आज़ादी दिलाई.  टीचर ने बहुत सालों तक यहीबताया जब तक स्कूल में पढ़ती रही. अब तो थकावट सीलगती इन जवाबों और बातों से. क्या मुझे भी आगे इसी जवाब को दोहराना होगा? यह सवाल अन्दर ही अन्दर खाए जा रहा है. 
फिर भी मैंने यह जवाब याद कर लिया था.

15अगस्त 1947- देश आजाद हो गया!

 ...15 अगस्त सन् 1947 को आज़ादी मिली थी. मैंने बहुत कुछ याद किया.
पर वास्तव की ज़िन्दगी में आज़ादी शब्द और बर्ताव में फर्क था. दिमाग से लेकर दिल में जंजीरें थीं और हैं. आज भी बहुत बड़ा बदलाव नहीं है. कभी कभी लगता है मेरी ज़िन्दगी के साथ ही यह जद्दोजहद दफ्न हो जाएगा. आसपास कितना बुरा हो रहा है. बहुत बुरा. कभी कभी इतनी गहरी चोट लगती है कि वह दिखाई और बताई नहीं जा सकती.

मुझे आज भी एक आज़ादी का इंतजार रहता है. सभी के लिए इस शब्द के अपने मायने हैं और शायद सभी को इस आज़ादीका इंतजार होगा ...है!

21 बरस की बाली उमर को सलाम, लेकिन

  दो साल पहले प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली लड़की से मेरी बातचीत बस में सफ़र के दौरान शुरू हुई थी। शाम को काम से थकी हारी वह मुझे बस स्टॉप पर मिल...