दिल्ली विश्वविद्यालय की उस छात्रा के कदम के पीछे के कारण को पड़ते हुए एक बात फिर से सोची जानी चाहिए। वह जरूरी बात है। लड़के ने निजी पलों की फोटो ऑनलाइन डाल दिये जाने की धमकी दी थी। वह इस बात से घबरा गई थी। इस बात से मुझे मसान फिल्म की 'देवी' का किरदार याद आ जाता है। क्या उस लड़की ने यह फिल्म नहीं देखी थी? हो सकता है देखी हो, हो सकता है नहीं भी। पर क्यों जरूरी है देवी?
'देवी' ऑनलाइन और बे-ऑनलाइन समाज की सोच को समझने में मदद तो करती ही है साथ ही वह जानती है कि 'मुझे' आत्महत्या नहीं करनी है। वो इज्जत नाम के पर्दे को धकियाकर इसी बीमार समाज में जी कर दिखाती है। अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीती है। दिलचस्प बात यह भी है कि देवी गंगा किनारे वाली लड़की है। उसका पहनावा और बोलचाल मासूम और साधारण है। और तो और दिमाग खराब हो तो नौकरी भी लात मार के चल देती है। हालांकि फिर भी लोग यह कहेंगे कि यह तो फिल्म में है। रियल ज़िंदगी में कोई भी शर्म से मर जाएगा। हो सकता है मर जाये, पर आगे यह भी हो सकता है न मरे। यह दुनिया है। यहाँ कुछ भी हो सकता है।
जब मैं लाज या लज्जा शब्द सोचती हूँ तब मुझे यह बड़े लिजलिजे से मालूम होते हैं। जैसे गर्मी के कारण पिघला हुआ गुड़। जैसे शहद की टपकती हुई बूंद। और भी। अभी याद नहीं आ रहा। यह परंपरा का हिस्सा है जो सड़ा हुआ टमाटर है। यह औरत के शरीर की बनावट और उसके अपने शरीर के साथ रहने के तौर तरीक़े से चिपके हुए कई सदियों से उसे दीमक की तरह खा रहा है। कुटर--कुटर ऐसी ही आवाज़ मैंने बांस में लगी दीमकों से सुनी थी कुछ वक़्त पहले। लाज, शरीर और औरत की हरकतों से कितने महीन तरीके से जुड़ा है कि इसे अलग कर के देखा नहीं गया कभी। चेहरा, छाती या हर वो अंग जो ढकने के लिए निर्देशित है सब छुपा लो। वह प्रक्रिया छुपा लो जिसे दो लोगों पाया जाता है। कितने दकियानूस नियम हैं। सिर्फ औरत के लिए। औरत शिकार है। कितना कोमल शिकार।
जो नहीं शर्माएगी, वो तो बदचलन है। खुला निमंत्रण भी है आओ और जो चाहे कर लो। यही सोचता है यह लोगों का बेतरतीब गुच्छा। भीड़ है। क्योंकि समाज ये नहीं होते। होते हैं क्या?
ए लड़कियों! सुनो। तुम्हारी पॉर्न फिल्में करोड़ो के कारोबार को हर साल निबाह जाती हैं। जब लोगों को पॉर्न देखते हुए शर्म नहीं आती तो तुम क्यों इतना घबरा जाती हो ऑनलाइन फोटो लीकेज़ से? क्या लोगों के तुमसे जुदा अंग होते हैं? क्या स्तनों का प्रकार अलग होता है? क्या जो लोग तुम्हारी फोटो देखकर हाआआ...कर के मुंह खोलते हैं या खोलती हैं, उनका जिस्म तुमसे जुदा है? ज़िंदगी के सबसे बड़े डर को सामना कर के समझा जा सकता है कि वह डर बहुत छोटा था। मत डरिए इन सब बातों से। सभी लोगों में एक खामोश लड़ाकू (वरियर) होता है। उसे उभारिए और लड़ जाइए। यही नियम और उसूल है।
अपनी ज़िंदगी को यूं न खत्म करो। लड़े बिना हार जाना सबसे बड़ा अपराध खुद के और कुदरत के खिलाफ है। क्या आपको नहीं पता कि लिक्स होने पर रींच से उसे दुरुस्त किया जा सकता है। जब पानी के पाईप ठीक कर दिये जाते हैं तो ज़िंदगी को क्यों नहीं मरम्मत के संदर्भ में देखा जा सकता! हमारी ज़िंदगी के साथ कुछ अटपटा होगा या वह बीमार कर दी जाएगी तो आपको डॉक्टर बनना ही होगा।
फोटो लीक्स की धमकी देना एक अपराध है पर कानून ने उसकी मदद नहीं की। बल्कि कहा समझौता कर लो। कानून से यकीन उठ सा गया है। हमारी एक समाज के नाते, एक संस्था के नाते भी बहुत बड़ी लापरवाही सामने आती है। हम ज़िंदगियों को लेकर संवेदनशील नहीं है। हमें अपने समाज और कानून की कड़ी आलोचना करनी ही होगी।
अपनी ज़िंदगी को यूं न खत्म करो। लड़े बिना हार जाना सबसे बड़ा अपराध खुद के और कुदरत के खिलाफ है। क्या आपको नहीं पता कि लिक्स होने पर रींच से उसे दुरुस्त किया जा सकता है। जब पानी के पाईप ठीक कर दिये जाते हैं तो ज़िंदगी को क्यों नहीं मरम्मत के संदर्भ में देखा जा सकता! हमारी ज़िंदगी के साथ कुछ अटपटा होगा या वह बीमार कर दी जाएगी तो आपको डॉक्टर बनना ही होगा।
फोटो लीक्स की धमकी देना एक अपराध है पर कानून ने उसकी मदद नहीं की। बल्कि कहा समझौता कर लो। कानून से यकीन उठ सा गया है। हमारी एक समाज के नाते, एक संस्था के नाते भी बहुत बड़ी लापरवाही सामने आती है। हम ज़िंदगियों को लेकर संवेदनशील नहीं है। हमें अपने समाज और कानून की कड़ी आलोचना करनी ही होगी।
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