Saturday, 23 September 2017

कुछ छवियों से परहेज़ करना चाहिए


इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर जमकर औरत और मर्द दोनों ही नवरात्र के इन दिनों में एक दूसरे से बाँट रहे हैं और प्रोफ़ाइल भी अपडेट कर रहे हैं। भारत में तस्वीरों का एक बहुत बड़ा बाज़ार है जिनके पीछे की वजह यह है कि यहाँ के अधिकांश देवी देवता चित्र में मौजूद हैं। सभी देवी देवताओं की कल्पना कर के उनको एक प्रभावी और खूबसूरत रूप दिया गया है।  इसके अलावा दिल्ली की परिवहन सेवा में हिन्दी सिनेमा से लेकर दूसरी भाषाओं के सिनेमा के कलाकारों ने भी तस्वीरों में एक बड़ी जगह बनाई है। फेसबुक के आ जाने से सोशल मीडिया का रंग कुछ इस तरह बदला कि नए तकनीकी कैमरों से हर कोई अपनी तस्वीर साझा का सकता है। मैं कभी किसी दूसरे देश नहीं गई इस लिए मुझे नहीं पता कि वहाँ का रंग तस्वीरों के मामले में कैसा है? लेकिन अपने देश के भी बहुत छोटे से हिस्से को ही जिया है। अधिकतर घर से। लड़की होने की बहुत क़ीमत तो चुकानी ही पड़ती है। इसलिए गर लोग यह समझे कि भारत के 29 राज्यों के आधार पर तस्वीर वाली बात कह रही हूँ तो वे सबसे पहले खुद की राय दिमाग में उगा लें। 


हमारे यहाँ बचपन से ही तस्वीरों से मुलाक़ात शुरू हो जाती है। अगर आप स्कूल में दाखिल होने जा रहे हैं तब यह निश्चित है कि आपका फोटो पासपोर्ट साइज़ में आना तय है। इसके अलावा स्कूल के ढेर सारे समारोह में भी आपकी तस्वीरों में ख़ास जगह तय ही होती है। लेकिन स्कूल से पहले आपको अपने पारिवारिक फोटो का हिस्सा होना ही होता है। सवाल यादों का होता है। छुटकी कैसी लगती है या फिर छोटू बचपन में कितना ताज़ा मोटा था, यह बात आगे चलकर तस्वीरें ही बताती हैं। इसलिए तस्वीरआपकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है।इससे पहले और कहाँ तस्वीर देखने को मिलती है? घर की दीवारों ने परिवार को कभी दगा दाग नहीं दिया। हिन्दू हूँ इसलिए कह सकती हूँ कि दीवारों पर मुख्य धारा के देवताओं और देवियों का श्रद्धा से कब्जा हुआ होता था। आज भी है पर अब जरूरत तारीख़ और त्योहारों तक सिमटी है। 

अब सोचती हूँ तब पाती हूँ कि मैं कितने प्रभावपूर्ण नज़रिये से सरस्वती माँ के कपड़ों, गहनों, गोरे रंग को, वीणा को और मोर को ताका करती थी। इससे अधिक लक्ष्मी और शेरवाली माता की तस्वीरें अव्वल दर्ज़े की प्रभाव छोड़ने वाली होती थीं। ज़रा सोचिए, जिन शेरों को देखने से ही सिहरन हो जाए भला उस पर कोई देवी सवार हो जाये तो बच्चा दिमाग भगवान जैसे तत्व को न माने तो क्या करे। इस सारी कहानी को कहने का यही मकसद है कि तस्वीरें बहुत ही प्रभावित करती हैं। और इसे मामूली समझकर नज़रअंदाज़ कर देना ठीक बात नहीं। इसलिए जब एक औरत की बहु भुजाओं वाली तस्वीर देखी तो मेरा माथा ठनका, भला औरत को यह क्योंकर देवी बनाने पर तुले हैं?

एक ही  व्यक्ति का बहुत से काम कर देना पहली नज़र में उसका गुण हो सकता है पर उसके ऊपर आरोपित छवियों का एक हिस्सा भी समझा जा सकता है। औरत के बहुत से हाथ बनाकर उसमें काम और व्यस्तता के सभी उपकरण जबरन रचकर क्या  साबित होता है? यही कि वह आला दर्ज़े की नौकरानी है। मुफ्त का श्रम किया करती है। उसके पास पढ़ने का या कुछ भी रचनात्मक करने का समय नहीं है। वह इतनी अव्वल है कि सभी काम करने के चक्कर में अपने को आईने में देखना भी भूल जाती है। उफ़्फ़ ! गजब है! यह औरत है या गधी?

लोग तारीफ़ करें तो करें इस छवि की, मुझसे न हो पाएगी। भला क्योंकर मैं अपने को इस छवि में देखूँ? या भला कोई क्यों मुझे इस छवि में उभारे? हो सकता है जब इस छवि की रचना हुई हो तब इसके पीछे अच्छी मंशा हो। लेकिन अब तो यह मुझे छुपा हुआ चाकू-मार क़त्ल लगता है। टीवी पर आने वाला एक विज्ञापन तो इतने भयानक है कि कई दिन मैं उसके बारे में सोचती ही रही। पति, पत्नी से दफ़्तर में नीचे के पद पर है और पत्नी किसी भी हाल में उसे जरूरी काम निपटाने को कहती है। घर जाती है और फोन कर कहती है कि खाना क्या खाना पसंद करोगे?...बस यहीं वह निहायती बेवकूफ लगती है। मैडम, आप दफ़्तर में तो खट कर आई हैं और अब घर में भी कीचन की रौनक बनेंगी।  

यह बात कौन नहीं जानता कि औरतें बहुगुणी होती हैं और कलाकार भी। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि वे इस लिबास को मनपसन्दगी से औढ़ती हैं। तीन चार स्केच पेन उठाए और लग गए कलाकारी में कि देखिये औरतें तो बहुभुज हैं। जो काम कोई न कर पाये वह काम ये कर लेती हैं। बात को ठहर कर सोचिए। 'सेल्फी विद डॉटर' जैसा काम नहीं कि मोबाइल आगे किया और फोटो खींचकर एफ़बी पर पोस्ट कर दी और महिला जागृति और सशक्तिकरण कर दिया। फोटो खींचने से मजबूती आती तो लोग अंबुजा सीमेंट का काम सेल्फी खींचकर कर लेते और रुपया बचाते। लड़कियों अपना दिमाग दौड़ाओ। ऐसी तस्वीरों के पीछे अपने गधी होने की बात को समझो जो दिन रात मशीन की तरह काम करती है। जिसका रूटीन और समय काम के नाम है। यार, तुम्हें क्या अपने लिए एक कप चाय बनाकर खिड़की से बाहर गली को देखने का मन नहीं करता? या फिर कोई अपना मनपसंद गाना सुनने का मन नहीं होता? कभी दिन में थकावट से दस्तक दे गई झपकी लेने का मन नहीं करता? करता तो होगा। तुम इंसान ही तो हो!  

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