Tuesday, 26 June 2018

बारिश का मौसम

मौसम जब अपने समय पर आता है तब ज्यादा सुहावना लगता है. मन में कोई खोट नहीं होती. मन भी मौसम के साथ बहने लगता है. अब का तो पता नहीं पर जब कॉलेज में पढ़ती थी तब अगर कोई पूछता था कि सबसे अच्छा मौसम कौन सा लगता है. तब बिना देरी किये जवाब और उत्साह में कहती थी- बारिश का! बारिश का मौसम वास्तव में है भी बहुत अच्छा. पहली बारिश की बूँदें जब मिट्टी से आकर मिल जाती हैं तब जो महक उठती है उस की जगह दुनिया का कोई भी सेंट नहीं ले सकता. दिलचस्प यह भी है कि बूँद और मिट्टी के इस मिलन में कितनी आत्मीयता होती है इसे हर कोई समझ सकता है. यह महक नैसर्गिक है. कम से कम मैं तो यही मानती हूँ.

बारिश का होना ही हमारी दुनिया के लिए चमत्कार से कम नहीं. लेकिन न जाने क्यों लोग अब इस चमत्कार को पहचान नहीं पाते! जब छोटी थी तब मेरी बहन कहती थी कि अगर तुमने जरा सी भी शरारत की तो बारिश का चमत्कार कभी नहीं देख पाओगी. बादल उनके लिए जादू करते हैं जो कम शरारत करते हैं और अपनी बहन का काफी काम करते हैं. इसलिए बारिश के मौसम में मैं अपने बर्ताव से सबको हैरान कर देती थी. घर में मेरा होना मालूम भी कम चलता था. किस्मत से घर में कुछ खिड़कियाँ थीं जो बाहर के माहौल को जीने का मौका देती थीं. जैसे ही बारिश होती थी मेरा चहकना बढ़ जाता था. कई बार तो रात के नींद के पहर भी मुझे खिड़की के पास अकेले बाहर निहारते देखा जाना सामान्य था. 


 
घर के लोगों को लगता था कि मुझे शायद कोई मनोरोग है. मेरी माँ को अक्सर इस बात की चिंता रहती थी कि ये लड़की आसमान, बादल और तारों में क्या देखती रहती है, क्यों देखती है? एक बार उनके पूछने पर कहा भी था- "पता नहीं. बस, अच्छा लगता है!" हालाँकि तारे दिखा दिखा कर माँ ने ही उनके नाम बताये थे. जैसे सात तारों की कहानी, ध्रुव तारे के बारे में भी. और भी बहुत कुछ. बाद के बढ़ते हुए सालों में, घर की बनावट और पड़ोसियों के घरों ने आहिस्ता आहिस्ता ये सब छीन लिया. मुझे इस बात की खबर अब के समय होती है. हालाँकि मेरे घर के लोगों को यह लगता है कि बचपन वाली बीमारी ठीक हो गई है. लेकिन मुझे लगता है अब ज्यादा बीमार हूँ. कुछ दीखता ही नहीं कहीं. न बादल, न आसमान और न अच्छी वाली बारिश. 

हम्म ...पानी...जल...स्कूल की उस किताब में चित्र से दिखाया और समझाया जलचक्र. कितना गज़ब था यह जानना कि पानी का सफ़र क्या है! एक बार मुझे समुद्र देखने और बोट से उसके बीच में जाने का मौका भी मिला था. उस अनुभव को कभी डायरी में दर्ज नहीं कर पाई. कैसे लिखें उस अनुभव को जिसे महसूस किया जाता है! जो सिर्फ और सिर्फ महसूस करने के लिए ही होते हैं. समुद्र में ऐसा कुछ जादू है जो सम्मोहित करता है. यह बेमिसाल है. लगता है कि शरीर का 70% पानी चुम्बक की तरह समुद्र के पानी की ओर बढ़ रहा है. आसमान ठीक सर के ऊपर बैठा है. हवा आपको बारम्बार चूम रही है. सुमुद्र और उसके नीचे फिर जमीन. सब अद्भुत है. हालाँकि डिस्कवरी चैनल ने समुद्र को जिस तरह पेश किया है वह एक रूप है. पर समुद्र हर उस इन्सान के लिए अलग अलग रूप में है जो उससे मुलाक़ात करता है.'जब जब फूल खिले' फिल्म में नंदा और शशि कपूर की जोड़ी तो बेमिसाल थी पर वे शिकारे और लाजवाब थे जो झील में तैरते थे...झील बोले तो पानी...समुद्र बोले तो पानी...तालाब बोले तो पानी...कुछ तो कहीं गड़बड़ करने का हक होना ही चाहिए.  



बिन मौसम बारिश चुभती है. जलन देती है.उमस लाती है. फसल ख़राब कर देती है. वो बारिश मुझे उतनी नहीं सुहाती. मन में बहुत अल्फाज़ अब घुमड़ रहे हैं. सब लिखूंगी तो देर हो सकती है. फ़िलहाल तो मौसम ने आज दस्तक दी है. छत पर आज ही दोपहर में नन्ही नन्ही बूंदें देखी थीं. मन तृप्त हो गया था. मौसम आ गया. बारिश का. बरखा का. वर्षा ऋतु का. रैनी का. बूंदा बांदी का...उस कहानी का भी जो मेरी मां आज भी जिद्द करने पर शब्द दर शब्द सुना देती है...'टिपटिपवा' नाम की कहानी. बारिश से जुड़ी कहानियां बहुतेरी मिल जाएंगी. इनका मज़ा भी इसी मौसम में आता है. लुत्फ़ लीजिये इस मौसम का. पानी इकठ्ठा करें और उसका सही इस्तेमाल भी. यकीं करें मन संतुष्ट होता है.     



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