कुछ बातें ऐसी हो जाती हैं जो बुरी तरह से चुभती हैं। कल फेसबुक पर किसी पढ़े-लिखे जनाब की पोस्ट देखी तब कुछ और जानकारी लेने के लिए मैंने उस पोस्ट के बारे में तमाम तरह के किए गए कमेंट्स भी पढ़ लिए। अब पोस्ट का ब्योरा दिया जाये। पोस्ट में एक सुंदर लड़की का फोटो था जिसने पाकिस्तान नाम की एक पट्टी डाली हुई थी। वह शायद किसी सुंदरता प्रतियोगिता की एक प्रतियोगी थी। उसने सफ़ेद रंग के अन्तः वस्त्र पहने हुए थे। फोटो को डालते हुए यह लिखा गया था कि वह जनाब जल्द से जल्द पड़ोसी देश से अच्छे रिश्ते के इच्छुक हैं। नीचे दी गई टिप्पणियाँ बेहद निचले दर्ज़े की थीं। एक जनाब ने स्तनों के बारे में लिखा था कि नीचे ज़्यादा ही लटक रहे हैं, किसी ने लिखा था कटवी है बच कर रहा जाये.., ऐसे ही और भी बातें थीं। अब बात किसी पाकिस्तानी महिला के संदर्भ में कही जाये या फिर भारतीय या अन्य किसी देश की औरत के बारे में, यह क्यों नहीं उस देश के बहुत से पुरुषों की मानसिकता परिचायक समझा जाए। जो देश के खिलाफ़ बोलता है, वो देश द्रोही है पर जो औरत की बातों बातों में इज्जत ही ले लेते हैं वे क्या कहलाएंगे इसके लिए भी शब्दावली की जरूरत है। अब बात घटिया मानसिकता वाले कह कर पूरी नहीं हो सकती।
आज की ही बात है। एक लड़की जो कि बस से उतरने के लिए खड़ी हुई तो दो नौ जवान लड़कों की नज़रें उसके स्तनों से तर गईं। एक लड़का बड़े हल्के से बोला-'आह!' ऐसे दृश्य मुझे ही नहीं और भी बाक़ी लड़कियों को दिखते हैं। कई तो इन हरकतों का शिकार भी होती हैं। बक़ौल राजेंद्र यादव, नारी से अधिक नारी का आइडिया हमें हमेशा सम्मोहित करता रहा है।(1) अब इस नारी का आइडिया और सम्मोहन को समझे तो पता चलेगा कि सड़क से बहुत से मेहनतकश मज़दूरों में से एकाद साईकिल पर सवार जाते हुए आदमी बस के इंतज़ार में खड़ी लड़कियों को पूरी ऊर्जा के साथ आँख मारकर सर(जल्दी) से निकल जाते हैं। इसी तरह गाड़ी में कुछ तमीज़दार गुज़रते हुए अपनी मुंडी हिला हिलाकर बग़ल में बैठने का निमंत्रण देते हैं। कुछ दो पहिये वाले जरा ज़्यादा सत्यानाशी स्टाइलिश होते हैं। उनके इशारे सबसे गंदे होते हैं। अब लोग बोलेंगे कि तुम लड़कियों की ही ग़लती है। आवाज़ नहीं उठातीं तुम लोग! पर मामला औरत को एक इंसान की तरह न देख कर एक सेक्स ऑब्जेक्ट में देखने का है। कई लोग तो लड़की को देखकर दिमाग में ही रेप कर देते हैं और नॉर्मल चेहरे में ही दिखते हैं। एक जेंटलमैन की तरह। तो क्या इसके लिए भी आवाज़ उठाई जाएगी!
बात आवाज़ उठाने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि ऐसी हरकतें हमारे लोगों(बाहर के लोगों में भी) के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग आख़िर क्योंकर हैं? भारत के बारे में मैंने बहुत लंबे समय तक एक चमकीली गलतफहमी पाल रखी थी। यह हाल के समय में ही मुझसे दूर हो रही है। गलतफहमी यह कि भारतीय संस्कृति बहुत महान है। पता नहीं क्या फ़लाना-ढमकाना हमारे यहाँ हुआ है। ऐसा माना जाता है तो वैसा माना जाता है। तो ये, तो वो....उफ़्फ़! अब मुझे ऐसा लगता है कि जिस देश की संस्कृति और इतिहास को हद से ज़्यादा गौरवपूर्ण रचाया और दिखाया गया हो तो उस पर शक़ किया जाना चाहिए। किसी भी देश का इतिहास या संस्कृति महान नहीं होनी चाहिए। उसे ऊबड़ खाबड़ मानवीय घटनाओं से भरा होना चाहिए। ऊबड़ खाबड़ होने की निशानी यह बतलाएगी कि संघर्ष कितने महान रहे होंगे। आज जिस आज़ादी को मैं जी रही हूँ, लिख रही हूँ, बोल रही हूँ, पढ़ रही हूँ, सोच रही हूँ, समझ रही हूँ, ...वह ऐसे नहीं आई मेरे पास। इसके पीछे तमाम महिलाओं और पुरुषों के संघर्ष रहे हैं।
हमारे समय में जिसकी मैं साक्षी बन रही हूँ, दैनिक दिनचर्या में औरत और प्रकृति दोनों की कोई अच्छी दशा और दिशा नहीं है। मार्क्स अंकल के एक कथन का महान आशय यह रहा है कि अगर किसी समाज में पर्यावरण को समझना हो, जानना हो तो उस समाज में औरत की स्थिति देख लेनी चाहिए।(2) बात में दम है। कल जब एक कोर्ट ने गंगा और यमुना को जीवित मानने की बात कही तो मुझे ज़रा अटपटा लगा। आपको यह बात समझने में इतनी देर क्यों हुई कि नदिया जीवित ही होती हैं? ख़ैर, माना तो सही।... अच्छा नदी की बात चली है तो आप सिंधु नदी को भी जानते होंगे, जो पड़ोसी मुल्क में भी बहती है और हमारे मुल्क में भी। पाकिस्तान में भी सिंधु का पानी, पानी ही होता है और हिंदुस्तान में भी वह पानी, पानी ही होता है। तो उस पाकिस्तान की लड़की पर क्या इसलिए भद्दे इशारे किए जाने चाहिए क्योंकि वह पड़ोसी मुल्क से ताल्लुक रखती है, जिससे हमारे रिश्ते अच्छे नहीं रहते? सोचिए ज़रा! ... फेसबुक पर एक मजेदार पोस्ट या 'लाईक्स' की भूख को शांत करने के लिए ऐसी हरकतें करने वाले बहुत से लोग हैं। असल रोज़मर्रा में भी ऐसे बहुत से लोग दिख ही जाते हैं। वास्तविक और आभासी दुनिया में ऐसे बहुत से लोग मिलकर 'डेंजर ज़ोन' बना देते हैं। इसी ज़ोन के चलते फिर हमें वैधानिक सी चेतावनी दी जाती है- रात के अंधेरे में घर से बाहर न निकलें...!
प्राचीन मिस्त्र में इत्र बनाते हुए लोगों का चित्र
किसी भी घर, परिवार और मुल्क की इज्जत लेने का सबसे अच्छा तरीका औरतों को इस्तेमाल करने का निकाल लेते हैं। किसी औरत पर वैचारिक हमला भी करना हो तो उसे एक महान गाली दी जाएगी जिससे उसे अव्वल दर्ज़े का नुकसान पहुंचाया जाये। वास्तव में लोगों को यह समझना ही पड़ेगा कि औरत वह नहीं है जो किसी मर्द के द्वारा लगाए गए सेंट को सूंघकर उसके पास चिपक जाएगी। यह कंपनियों की बेईमान कल्पना है। 'एक्स इफेक्ट' टीवी विज्ञापनों में चलता है। औरत के पास अपना दिमाग है। इसलिए उनमें इतनी समझ तो है कि सेंट सूंघकर किसी से नहीं चिपका जा सकता। 'एक्स इफेक्ट' औरतें यहाँ नहीं रहती हैं वो तो बस बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रचनात्मक हैड के दिमाग में रहती हैं। गलती उनकी भी नहीं। कहीं से उन्हों ने ढमकाना कोर्स किया होगा या करने वाली होगी।
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1 व 2-दलित आंदोलन का इतिहास, मोहनदास नैमिशराय