Saturday, 4 March 2017

'ℼ'

आठ मार्च आने वाला है। चलिये कुछ सोच लें!
1.
कुछ दिन पहले हिन्दी की ख़ासी चर्चित पत्रिका के पन्ने पलटते हुए मैं आख़िर तक पहुँच गई। यह पत्रिका देखने का अच्छा तरीका है। पर उस जगह मुझे लगभग 15 मिनट रुकना भी पड़ा। लेख तस्लीमा नसरीन के बारे में था। ऐसा नहीं है कि यह मेरी पसंद की लेखिका हैं। उनका लिखा हुआ पसंद है। उनके बारे में जानने की इच्छा हुई सो पढ़ना शुरू किया। वह लेख एक अनुवाद था। मुझे अनुवादिका का नाम अभी याद नहीं आ रहा। उस लेख में नसरीन साहिबा की एक बड़ी परेशानी की बात थी। उन्हें रहने के लिए कोई भी घर नहीं मिल रहा। वह इस चलते लगभग नुकीली ज़िंदगी जी रही हैं। अभी वह जिस मकान में रह रही हैं वह उनके किसी मित्र का है, जिसे मित्र का बेटा कुछ ही दिनों में बेचने वाला है। इसलिए उन्होने रहने के लिए घर खोजने की क़वायद शुरू कर दी है।
क्योंकि वह बांग्लादेश से ताल्लुक रखती हैं इसलिए भारत में उस जगह की महक लेने की वह भरपूर कोशिश में रहती हैं। दिल्ली की चर्चित जगह सीआर पार्क उर्फ चित्तरंजन पार्क को वह अपना ठिकाना बनाना चाहती हैं। लेकिन उन्हें कोई भी अपना मकान किराए पर नहीं देना चाहता। लेखिका के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान के समय आज के सबसे बड़े नेता ने तस्लीमा नसरीन के नाम और उनकी दशा को वादे के साथ भाषणों में जगह दी थी। पर वे अब भूल गए हैं। वे उनका नाम भी नहीं लेते। इस लेखिका का संघर्ष ज्यों-का-त्यों है।
सोचिए हम कितने गुमान में कहते हैं कि हम भारत के लोग लोकतन्त्र के हिमायती हैं। पर यह भी है कि सिर्फ़ बातों के गुब्बारे फुलाने में। एक सेमिनार हुआ नहीं कि सबसे पहले चिल्लाने लगते हैं। गौर से देखने में गुरमेहर कौर और तसलीमा नसरीन, दोनों ही कट्टरता की शिकार हैं। एक को उसका देश छुड़वा दिया गया और दूसरी को दिल्ली। बहुत बड़ा फ़र्क नहीं है। ध्यान से सोचिए! 'पुरो' को उसका ठिकाना मिल गया पर कईयों को अभी तक नहीं मिला है। कई और भी हैं जो अपने मन मुताबिक़ ठिकाने की तलाश में भटक रही हैं। पर वे हार नहीं मानतीं। ठिकानों की मार क्यों पड़ रही है जबकि हम कितनी तरक्की कर रहे हैं? एक चैन की ज़िंदगी क्यों नहीं मिल सकती, जबकि धर्म और राज्य भलाई और सेवा के लिए हैं?



 2. 
दो साल पहले की बात है। जब मैं नौकरी किया करती थी। अपने बलबूते पर एक घर(कमरा) खरीदने की तमन्ना रखती थी। इसी को पूरा करने के लिए बैंक लोन लेने का भयानक ख़याल सुहाने सपने की तरह आया। इस बाबत मैंने बैंक के कस्टमर केयर को फोन लगा दिया। मैंने उनके सभी सवालों का जवाब बड़ी खूबसूरती से दिया और पूछा- 'क्या मुझे लोन मिल जाएगा?' दूसरी तरफ से उस स्पीकर ने पूछा- 'आपको घर की क्या जरूरत है?' मैं बहुत हैरान हुई। कहा- 'है।... इसलिए जानकारी इकट्ठी कर रही हूँ। ताकि ख़ुद का घर ले पाऊँ।' वो एकदम से हंसने लगा और तुरंत बोला- 'अरे आप तो दूसरे घर जाएंगी जहां आपका अपना घर होगा। अभी तो आप अपने मम्मी पापा के साथ होंगी। वही आपका घर है।' मैंने फोन रख दिया और लोन का ख़याल त्याग दिया। हालांकि बाद तक मैंने ख़ुद से किस्तों में कमरा या फ्लैट ख़रीदने के कई ख़याली पुलाव पकाए। पकाने में कोई बुराई नहीं। अब ऐसा लगता है कमरे के बारे में सोचकर ही बहादुरी का काम किया था।... कितना कुछ जतला दिया जाता है कि तुम एक लड़की हो। आप यह कह सकते हैं कि मुझे दुनियावी चीज़ों का लालच है। लेकिन मुझे इस बात की फिक्र नहीं। मुझे फिक्र उस सवाल से है, जो मुझसे पूछा गया था। मैं आख़िर अपना घर क्यों नहीं ले सकती?

3.
आपने ज़रूर गणित के 'ℼ' को एक न एक बार चाहा होगा। इसे पाई कहा जाता है। इसका मूल्य 22/7 या 3.14 कई जगह सटाया होगा। यह गणित में रहने वाला बहुत मज़ेदार निशान है। जैसे ही दिखता है हमारे दिमाग में तुरंत आ जाता है कि अब इसकी जगह 22/7 भी चिपकाया जा सकता है। यह याद में ठहर जाने वाली बात भी है। लेकिन याद में ठहर जाने और किसी बात के साथ चिपक जाने में अंतर है। मैं ख़ुद भी इसी बात की शिकार हूँ। मैं भी कई बार 'ℼ' की तरह महसूस करती हूँ। ऐसा लगता है कि लोगों को अपने अनुसार देखती हूँ जबकि वह अलग हैं। वे सभी अपने अनुसार हैं। यह बात आपको आजकल एक जुमले में पढ़ने को मिल जाएगी कि हम दुनिया को दुनिया जैसी है न देखकर वैसे देखते हैं जैसे हम हैं। बात सही भी है। मैंने 'ℼ' का ज़िक्र कुछ सोचकर ही किया है।



मैंने 'ℼ' के साथ एक जांच की। मैंने इस बात को कुछ लोगों से बांटा भी है कि मैं 'ℼ' जैसा महसूस करने लगी हूँ। वे मुझ पर हंस देते हैं। इस बात को हमें समझना चाहिए। अक्सर लोग किसी न किसी फिक्स खयाल के मारे होते हैं। जैसे 'ℼ' के बारे में मैंने अपने चार दोस्तों से बात की। मैंने कहा-'कुछ बताओं इसके बारे में।' उनके जवाब काफी आशा अनुरूप ही थे। किसी ने 'लाइफ ऑफ पाई' का नाम भी लिया पर सभी ने उसके मूल्य के बारे में ज़रूर कहा। कारण उन्होंने स्कूल में इसके बारे में जाना था। सवाल हल किए थे। तभी से दिमाग में 'ℼ'  जम गया है। ...अभी समझे कि मैं 'ℼ'  की तरह क्यों महसूस करती हूँ! जिसे देखो वह अपनी जमी-जमाई प्रतिक्रिया उड़ेलने को तैयार बैठा है। हमने एक ही सूत्र से सारे सवालों को हल करने की कसं खाई है। कहीं कुछ हुआ नहीं कि अपना अपना 'ℼ' लिए सभी खड़े हो जाते हैं। गुरमेहर को शिकार बनाने वाले भी ऐसे ही हैं जो सेट पैटर्न के शिकार हैं। गुंडों का दिमाग होता तो भयानक ही है। इसलिए गुंडों से डर लगता है। पर उन लोगों के बारे में आप क्या कहेंगे जो सफ़ेद कॉलर वाले गुंडे हैं? वास्तव में ये सभी सफ़ेद कॉलर वाले वो लोग हैं जो रूढ़िवाद से ऊपर उठ नहीं पाते और हर सवाल या मसले को 'ℼ' समझ कर हल कर लेना चाहते हैं। आजकल 'ℼ'  मूल्य देशभक्ति है जो सिर्फ़ नारे में दिखती है। आपको क्या लगता है?

सोचिए तो इन सवालों पर...!

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