मेरे पास मुझसे कुछ ही साल कम उम्र की लड़कियों और लड़कों के फोन आते हैं। वे निहायती निराश और परेशान समझ आते हैं। बहुतों को देश में मौजूद व्यवस्था या आसपास की सामाजिक प्रणाली से शिकायतें होती हैं। बहुत लोग सवाल पूछते हैं। अपने करियर से जुड़े। कुछ लोगों की प्रेम कहानियाँ सुनती हूँ। कुछ लोगों के परिवार का हिस्सा जाने कब बन जाती हूँ। कुछ लोगों की फौरी परेशानियों का हल बताने की कोशिश करती हूँ। हालांकि मैं कितनी और कहाँ तक-सही गलत होती हूँ मुझे भी इस बात की ख़बर नहीं है। हाँ, पर मैं मदद जो कर पाऊँ तब जरूर करती हूँ।
इन नौजवान लोगों से ही मुझे आजकल सुनने की अच्छी आदत लगी है। कई लोग मुझे व्हाट्सएप और फ़ेसबुक पर भी देर तक बातें करते हैं। उनकी बहुत सी बातें निजी होती हैं। निजी बातों के दायरे में आते ही मुझमें थोड़ी हकलाहट होने लगती है। एक ज़िम्मेदारी का अहसास हो आता है। पर इन सब से यह भी पता चलता है कि आजकल के ये नौजवान लोग (इनमें मैं भी शामिल हूँ) बहुत ही रफ़्तार पसंद लोग बनते जा रहे हैं। कर्म से पहले फल को सोच लेने वाले, पढ़ाई से पहले जानकारी को कैच करने वाले, जल्दी भावुक होने वाले, जल्द ही विश्वास करने वाले, मिश्रित प्रकृति वाले हैं ये लोग।
उनकी रीडिंग से यह पता चलता है कि कई बार ये नौजवान अपने कामों और फैसलों से चौंका देते हैं। उम्मीद से परे या तो ये बहुत हद तक जिम्मेदारियों को समझ लेते हैं या फिर कई इतनी सी उम्र में बेहद परिपक्वता वाली बातों को अंजाम देते हैं। कभी जब पास बैठती हूँ तब इनमें से भारी उर्ज़ा को चारों ओर फैलता हुआ अनुभव करती हूँ। ऐसा लगता है कि इनका दिमाग बड़ी तेज़ गति से काम कर रहा है। ठीक इसी तरह जब मैं मेट्रो में यात्रा कर रही होती हूँ तब मुझे यकायक बहुत आहिस्ता से कही गई बातें भी सुनाई दे जाती हैं। यकीन मानिए मेरा यह कतई मतलब नहीं है कि मैं जानबूझकर सुनना चाहती हूँ। मैं कानों पर दीवार नहीं खड़ी कर सकती और न ही आवाज़ की गुणवत्ता को मार सकती हूँ। मुझे बस सुनाई देता है।
और इस तरह से धीरे-धीरे मैं उनके संसार में कदम रखती चली जाती हूँ। ठीक वैसे ही जैसे एलिस करती थी। अहा! एक कहानी जो मुझे हाल ही में अपनी मेट्रो यात्रा में सुनाई दी। ...उसे साझा करना चाहूंगी।
बहुत भीड़ थी और बहुत कोलाहल भी था। एक लड़की बहुत ही धीमे से हेड्स फोन से बात कर रही थी। चूंकि मुझे कहीं खड़े होने की जगह नहीं मिल रही तो मैं उससे थोड़ी नजदीक खड़ी हो गई। उसने मुझे नज़रें उठाकर देखा। मैंने भी। हम दोनों मुस्करा दिये। वह थोड़ा खिसक गई और मैं ठीक से खड़े होते हुए उसके और नजदीक आ गई। उस दिन मैं शायद परेशान थी कुछ बातों को लेकर। इसलिए मेरा ध्यान शुरू शुरू में उसकी बातों पर नहीं गया। वह मेरी ही हमउम्र लग रही थी। आवाज़ महीन थी। उसके बाल घुँघराले और रंग पक्का था। मेरा वाला रंग। आँखों को मसकारे से सजाया था। वह कुल मिलाकर बहुत ही अच्छी लग रही थी।
वह बात कर रही थी- 'मैं क्या करूँ? मैंने खुद से ही सीख लिया है। Yes...I learned now...totally. जब उसे मेरी फिक्र नहीं तो मैं क्यों अपना दिमाग उस पर जाया करूँ! पहले काफी इंटरेस्ट लेता था। but now...he has just stooped. I know...he has anyone. May be beautiful more than me...सुन मैंने तो तुझसे कुछ कभी नहीं छिपाया। उसकी जो अजीब सी शर्तें हैं, वो पूरी नहीं हो सकती। प्यार में शर्त ही है आजकल। Honesty तो बची ही नहीं है। ...'
दूसरी तरफ कोई लड़की ही थी जो मेरी तरह अच्छे कान रखती थी। वह हाँ या yes बोलकर इस लड़की की बातों को आगे बढ़ा रही थी। मुझे ऐसा भी लगा कि वह अच्छे तरीके से किसी के सीने का ग़ुबार निकलवा रही थी।
यह लड़की आगे बोली-
'नहीं... अभी सब बंद। जबर्दस्ती तो किसी से कहा जा नहीं सकता कि मुझे पसंद करो। पता नहीं लोग इतने अजीब से क्यों होते हैं! मशीन के type। समझ नहीं आते। अभी मुझे न थकावट होती है। भाड़ में जाए साला सब कुछ। कूल रहूँगी। अपना पढ़ाई वढ़ाई पर ध्यान देना है। वैसे भी distance kills relationship. अभी मुझे खुश रहना है। कुछ करना है। हर बात में दिल में मातम लेकर नहीं बैठना चाहती। बहुत stress हो जाता है। दुनिया में पहले से ही इतना कुछ हो रहा है। फिर मैं क्यों किसी एक के मुझे पसंद न करने से मरी जा रही हूँ।...'
इस लड़की ने एक लंबी सांस ली और आगे बात करती गई। मेरा स्टेशन आ गया था। मैं उस रोज़ घर आई तो एक लड़की, जिसकी प्रेम ज़िंदगी अजीब मोड़ पर थी उसे उस लड़की की बातों से उदाहरण ले लेकर समझाया। मुझे नहीं पता कि उसे कितना समझ आया। पर मुझे समझ आ गया। उसकी कुछ लाइंस तो मैंने दिल में गांठ बांधकर रख ली। कसम से बहुत राहत है।
शुक्रिया उस लड़की का।
इन नौजवान लोगों से ही मुझे आजकल सुनने की अच्छी आदत लगी है। कई लोग मुझे व्हाट्सएप और फ़ेसबुक पर भी देर तक बातें करते हैं। उनकी बहुत सी बातें निजी होती हैं। निजी बातों के दायरे में आते ही मुझमें थोड़ी हकलाहट होने लगती है। एक ज़िम्मेदारी का अहसास हो आता है। पर इन सब से यह भी पता चलता है कि आजकल के ये नौजवान लोग (इनमें मैं भी शामिल हूँ) बहुत ही रफ़्तार पसंद लोग बनते जा रहे हैं। कर्म से पहले फल को सोच लेने वाले, पढ़ाई से पहले जानकारी को कैच करने वाले, जल्दी भावुक होने वाले, जल्द ही विश्वास करने वाले, मिश्रित प्रकृति वाले हैं ये लोग।
उनकी रीडिंग से यह पता चलता है कि कई बार ये नौजवान अपने कामों और फैसलों से चौंका देते हैं। उम्मीद से परे या तो ये बहुत हद तक जिम्मेदारियों को समझ लेते हैं या फिर कई इतनी सी उम्र में बेहद परिपक्वता वाली बातों को अंजाम देते हैं। कभी जब पास बैठती हूँ तब इनमें से भारी उर्ज़ा को चारों ओर फैलता हुआ अनुभव करती हूँ। ऐसा लगता है कि इनका दिमाग बड़ी तेज़ गति से काम कर रहा है। ठीक इसी तरह जब मैं मेट्रो में यात्रा कर रही होती हूँ तब मुझे यकायक बहुत आहिस्ता से कही गई बातें भी सुनाई दे जाती हैं। यकीन मानिए मेरा यह कतई मतलब नहीं है कि मैं जानबूझकर सुनना चाहती हूँ। मैं कानों पर दीवार नहीं खड़ी कर सकती और न ही आवाज़ की गुणवत्ता को मार सकती हूँ। मुझे बस सुनाई देता है।
और इस तरह से धीरे-धीरे मैं उनके संसार में कदम रखती चली जाती हूँ। ठीक वैसे ही जैसे एलिस करती थी। अहा! एक कहानी जो मुझे हाल ही में अपनी मेट्रो यात्रा में सुनाई दी। ...उसे साझा करना चाहूंगी।
बहुत भीड़ थी और बहुत कोलाहल भी था। एक लड़की बहुत ही धीमे से हेड्स फोन से बात कर रही थी। चूंकि मुझे कहीं खड़े होने की जगह नहीं मिल रही तो मैं उससे थोड़ी नजदीक खड़ी हो गई। उसने मुझे नज़रें उठाकर देखा। मैंने भी। हम दोनों मुस्करा दिये। वह थोड़ा खिसक गई और मैं ठीक से खड़े होते हुए उसके और नजदीक आ गई। उस दिन मैं शायद परेशान थी कुछ बातों को लेकर। इसलिए मेरा ध्यान शुरू शुरू में उसकी बातों पर नहीं गया। वह मेरी ही हमउम्र लग रही थी। आवाज़ महीन थी। उसके बाल घुँघराले और रंग पक्का था। मेरा वाला रंग। आँखों को मसकारे से सजाया था। वह कुल मिलाकर बहुत ही अच्छी लग रही थी।
वह बात कर रही थी- 'मैं क्या करूँ? मैंने खुद से ही सीख लिया है। Yes...I learned now...totally. जब उसे मेरी फिक्र नहीं तो मैं क्यों अपना दिमाग उस पर जाया करूँ! पहले काफी इंटरेस्ट लेता था। but now...he has just stooped. I know...he has anyone. May be beautiful more than me...सुन मैंने तो तुझसे कुछ कभी नहीं छिपाया। उसकी जो अजीब सी शर्तें हैं, वो पूरी नहीं हो सकती। प्यार में शर्त ही है आजकल। Honesty तो बची ही नहीं है। ...'
दूसरी तरफ कोई लड़की ही थी जो मेरी तरह अच्छे कान रखती थी। वह हाँ या yes बोलकर इस लड़की की बातों को आगे बढ़ा रही थी। मुझे ऐसा भी लगा कि वह अच्छे तरीके से किसी के सीने का ग़ुबार निकलवा रही थी।
यह लड़की आगे बोली-
'नहीं... अभी सब बंद। जबर्दस्ती तो किसी से कहा जा नहीं सकता कि मुझे पसंद करो। पता नहीं लोग इतने अजीब से क्यों होते हैं! मशीन के type। समझ नहीं आते। अभी मुझे न थकावट होती है। भाड़ में जाए साला सब कुछ। कूल रहूँगी। अपना पढ़ाई वढ़ाई पर ध्यान देना है। वैसे भी distance kills relationship. अभी मुझे खुश रहना है। कुछ करना है। हर बात में दिल में मातम लेकर नहीं बैठना चाहती। बहुत stress हो जाता है। दुनिया में पहले से ही इतना कुछ हो रहा है। फिर मैं क्यों किसी एक के मुझे पसंद न करने से मरी जा रही हूँ।...'
इस लड़की ने एक लंबी सांस ली और आगे बात करती गई। मेरा स्टेशन आ गया था। मैं उस रोज़ घर आई तो एक लड़की, जिसकी प्रेम ज़िंदगी अजीब मोड़ पर थी उसे उस लड़की की बातों से उदाहरण ले लेकर समझाया। मुझे नहीं पता कि उसे कितना समझ आया। पर मुझे समझ आ गया। उसकी कुछ लाइंस तो मैंने दिल में गांठ बांधकर रख ली। कसम से बहुत राहत है।
शुक्रिया उस लड़की का।
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