Thursday, 5 September 2019

अनूठा अनुभव


जो देखा उस पर यकीं नहीं हो रहा, अभी भी. बंद आँखों से जो देखा जाता है, उस पर यकीं न करने के एक हज़ार कारण हो सकते हैं. यह बात ठीक भी है. सपने सबसे ज़्यादा तरल और हवा में तैरने वाले होते हैं. बेहद महीन. लेकिन जो देखा, वह सपना नहीं था. जो देखा था वह चमत्कार भी नहीं था. जहाँ तक लगता है वह दिमाग की शानदार करामात या संरचनाएं थीं. क्या किसी का दिमाग इस तरह से नए नए पैटर्न तैयार कर सकता है? इसका जवाब हाँ है. 

उस दिन इतना बुखार था. होश गायब था. जब तेज़ बुखार होता है तब व्यक्ति को अजीब और अटपटे ख़याल आने लगते हैं. इसमें कोई हैरत की बात नहीं. दर्द आपको बातूनी भी बना सकता है साथ ही साथ उसमें इतनी ताक़त होती है कि वह आपको किसी दूसरी दुनिया में आसानी से ले जाकर पटक सकता है. इसके लिए आपके परिवार के लोग भी एक महत्पूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब हालत नाजुक होती है तब घर में माएं सबसे अधिक मोह और प्यार के साथ पेश आती हैं. उनके द्वारा आपके लिए दिए गए भाव कुछ ऐसा माहौल पैदा करते हैं जिससे आपका दिमाग दूसरी ही रचनाएं बनाने में तेज़ी से काम करता है. 

फिर भी कहूँगी कि यह छल है. जो लिखने जा रही हूँ उस पर पूरा यकीं न भी कीजिए पर उसे नज़रन्दाज़ नहीं किया जा सकता. जो पैटर्न बंद आखों से दिखाई दिए वे बहुत हदतक दिमाग में कभी नहीं आये थे. ज़ोर डालकर याद करने पर भी कहूँगी कि अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में वे पैटर्न कभी नहीं दिखे. उनके रंग बेहद संजीदा थे. या कहूँ कि वे अनूठे रंग थे. जो आकृतियाँ देखीं वे ऐसी थीं जो ज्यामिति की कुछ आकृतियों से मेल खाती थीं पर हुबहू नहीं. इन पैटर्न में गति इतनी थी कि इनको पकड़ पाना मेरे लिए न-मुमकिन था. कईयों को दर्ज़ करने की कोशिश की पर असफलता ही हाथ लगी.uउनके होने की पृष्ठभूमि भी न तो धरती थी और न ही आकाश. मुझे बिलकुल समझ नहीं आया कि यह तस्वीरें कहाँ की हैं, किससे मेल खा रही हैं और ये हैं क्या? बहुत तेज़ी से सब बदल रहा था. मैं सौ प्रतिशत होश में थी. बुखार और दर्द था पर मैंने कभी भी अपने आप को किसी दर्द का गुलाम नहीं बनने दिया है, अभी तक.



जब समानता शब्द के बारे में सोचा तब एक बेहद खुबसूरत तस्वीर सामने आई. पानी दिखा उस समय. इस एहसास को मैं ही महसूस कर सकती हूँ. पानी को अक्सर हम अपने एक ज़रूरी साधन के रूप में ही देखते आये हैं. लेकिन क्या वह महज साधन भर ही है? शायद नहीं. उसके अलावा वह क्या क्या है, सोचना अच्छा रहेगा. शोर में भी सोचने की प्रक्रिया को बनाये रखना, चुनौती है. हम कभी मुकम्मल नहीं बन सकते. हम वही बन सकते हैं जो हमें बनाया गया है. एक बात और जो इन छवियों को देखकर कह सकती हूँ और वह यह कि हम इस महान प्रकृति के सामने कुछ भी नहीं है. कुछ भी! मेरा यकीं कीजिए. जो प्रकृति का रंग रूप हम इन नंगी आँखों से देख रहे हैं वह कुछ भी नहीं है. असली रूप इतना महान है कि वह अपने आप को इस महान प्रकृति से जोड़कर ही देखा जा सकता है. ऐसा बहुत कुछ है जो इस प्रकृति में है और जिससे हम अनभिज्ञ हैं. यह अच्छा भी है. जो मैंने देखा वह शानदार अनुभव था. उसको सबसे पहले मैंने अपनी माँ से साझा किया था और वो हैरान होकर मेरे शरीर की गर्माहट देख रही थी. उसके बाद मेरे जन्म से पहले की कहानी बतानी शुरू की. खैर, माँ के पास हमेशा बहुत कहानियां अपने बच्चों के लिए होती हैं, सुना कीजिए उन्हें. 

फ़िलहाल इस अनुभव के बाद मुझे कैसा लग रहा है, वह मैं साझा कर सकती हूँ. इस अनुभव के बाद मुझे बेहद कमजोरी और थकावट रहने लगी है. जिन चित्रों को देखा उसके लिए शायद ताक़त की जरुरत अधिक होती है. मेरे पास यह नहीं है. फिर मुझे यह सब दिखा उसके लिए इस महान प्रकृति की शुक्रगुजार हूँ. दूसरा अनुभव जो मैं कह सकती हूँ वह यह कि मन में एक आत्मीय आराम सा रहने लगा है. ऐसा लग रहा है जैसे रुई वाली बर्फ़ गिर रही है और 'राहत' पहुंचा रही है...काफी बदली हूँ पर उन बदलावों को शायद धीरे धीरे ही समझ पाऊं.

यह सब इसलिए लिख रही हूँ वो भी ब्लॉग पर क्योंकि हमारे यहाँ इस तरह की बातों को पागल की बातें क़रार दिया जाता है. जबकि यह पागलपन नहीं है. यह बिलकुल प्राकृतिक है. बहुत से लोगों को ऐसे अनुभव होते रहते हैं. उन्हें साझा नहीं करते. शर्म, डर और मजाक के चलते ऐसे अनुभव नहीं आ पाते. इन्हें लिखिए. ये आपके विवरण हैं. ये आप की दुनिया और ब्लॉग है. बाकी इसे किसी भी तरह के धर्म से जोड़ना पाप होगा. यह बिलकुल करने के पक्ष में मैं नहीं हूँ. 

फोटो मैं स्टारी नाईट लगा रही हूँ जिसे विन्सेंट वॉन गॉग ने बनाया था. इस पेंटिंग में आपको ज़रूर कुछ ख़ास मिलेगा अगर इसे देर तक देखें. मैं समझती हूँ मेरे चित्र का कुछ हिस्सा इस पेंटिंग में आया है..!








 

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