आप आधी रात तक जगे हैं और अपने आप को बिना बात के रोते हुए देखते हैं. शायद बहुत सी वजहें हों पर आपको ठीक से नहीं पता कि आप किस वजह से रो रहे हैं. आप अपनी दोस्त को मैसेज करते हैं और कहते हैं कि आप ठीक होना चाहते हैं, आप अपने पर काम कर रहे हैं. आपकी दोस्त आपको संभालती है और कुछ बातें करती है. वह आपको मेडीटेट करने के लिए कहती है. और भी काफी कुछ कहती है. लेकिन आप उसे मैसेज से यह कन्वे करने में सफ़ल होते हैं कि आप रो नहीं रहे आप ठीक हैं. आप थके हुए हैं पर नींद नहीं आ रही. आप कई दिनों से इसलिए भी परेशां हैं क्योंकि आपके जानने वाले बड़ी तादाद में आपको फोन कर आपकी हालत का जायज़ा लेना चाहते हैं. लेकिन आप इस रात में कहीं अटक गए हैं. उसी वक़्त आपके किसी और परिचित को आपके बारे में पता चलता है और वह फोन करता है. आप फोन नहीं उठाते. आप एक व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाते हैं कि आप ठीक हैं लेकिन बात करने की हालत में नहीं हैं. ठीक होने पर सबको फोन करने की कोशिश होगी. आप उनको उनके केयर और कंसर्न के लिए शुक्रिया भी कहते हैं. लेकिन आप रो रहे हैं. चुपके से. आपके रोने के बारे में घर में किसी को ख़बर नहीं. होनी भी नहीं चाहिए वरना इमोशनल ब्रेक डाउन हो सकता है, आपका पहले से है. बाक़ी लोगों का आपको देखने के बाद.
लॉक डाउन में कुछ ऐसे ही हालात हैं. खानपान ठीक है पर वह नाम के लिए है. आपके गले में हल्का सा भी कुछ दर्द है तो आप अपना आंतरिक और मानसिक मुआयना करने लगते हैं. आप गले को छूकर देखते हैं कि आपको दर्द किस हिस्से में है? आप डर जाते हैं कई बार, क्योंकि आपके पेरेंट्स ओल्ड एज में हैं. आपको लगता है कि कहीं कुछ ग़लत न हो जाए. यह ग़लत क्या है? आप रुकते हैं और फिर अपने गले पर हाथ फेरते हैं. आपको थोड़ा फिलोसफी से भी जीना आना चाहिए, ये आप सोचते हैं और उठ बैठते हैं. यह सिलसिला सुबह तक चलता हैं और आपको इस दौरान नींद का झोंका भर आता है. जब आपका नाम जाँच के लिए लिखा जा रहा था, उस दौरान आप सवालों के जवाब किसी मशीन की तरह दे रहे थे. आप सोचते हैं कि ये सब कब ख़त्म होगा? लेकिन इसी समय आप ये भी सवाल करते हैं कि ये सब कभी ख़त्म भी होगा?
आप कई दिनों से यह महसूस कर रहे हैं कि आप की आवाज़ जो काफी ठीक ठाक थी वह कहीं गले के अंदर अधूरे रास्ते में अटक गई है. आप के अंदर सब कुछ भरा हुआ है लेकिन आप बात करने में असमर्थ हैं. आपको पता है. ये वास्तव में खौफ़नाक है कि आप बोल नहीं पा रहे हैं, जबकि आप बोलना, बात करना या थोड़ा बहुत गा लेना जानते हैं. आपका एक दोस्त टेलीग्राम पर कर्ण से जुड़ा एक लेख जो जनसत्ता में प्रकाशित हुआ था, भेजता है. आप उसे पढ़ते हैं और कुछ कोशिश में आप उसे पूरा पढ़ लेते हैं. आपको खुन्नस आती है कि ये क्या चल रहा है? कर्ण, महाभारत या रामायण का मतलब क्या है, इस मौके पर? आप को लेखक क्या कहना चाहता हैं, भी ठीक से समझ नहीं आता और आप अपने दोस्त से कहते हैं कि लेखक को अपनी बात साफ़ लिखनी चाहिए थी. आप साथ में एक लाइन और लिखते हैं- "ढोंग लगेगा, लेकिन जो बच्ची अपने गाँव से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर मार दी गई उसकी पहचान करें या उसे क्या जवाब दें.., इस घटना और इसी तरह की घटनाओं को देखकर, पढ़कर रात भर नींद नहीं आती." आपका दोस्त अंग्रेज़ी में 'same' लिखकर जवाब देता है.
आप बैठ गए और सोचते हैं. आप सोचते हैं कि इस वजह से आपकी आवाज़ चली गई? आप फिर उन तमाम घटनाओं को सोचते हैं. आप सारी मौत का सोच रहे हैं. आप कभी अमरीका नहीं गए लेकिन जब वहाँ से मौत की ख़बरें आती हैं तब आप फिर रात में अपने आप को रोते हुए पाते हैं और किसी को खोजते हैं, बात करने के लिए. लेकिन दुःख की बात यह है कि आप अपनी आवाज़ खो चुके हैं. आप बोल नहीं पा रहे. इस दौरान आपके कॉलेज के बच्चे आपके साथी आपकी फ़िक्र करते हैं और वो सवाल करते हुए आपसे बात करना चाहते हैं. पर आप कैसे बताएं कि उनकी दोस्त और टीचर जो लेक्चर्स में कितनी बातें रखती थी, करती थी उसकी आवाज़ खो गई है. वह गुम गई है. वह हर जगह से ग़ायब हो जाना चाहती है. वह हर उस जगह और लोगों से कट जाना चाहती है, जो उससे बात करना या रहना चाहते हैं. आपको लगता है कहीं आप पागल तो नहीं हो रहे? लेकिन बात इतनी बड़ी नहीं है. बात महज यह है कि आपकी आवाज़ आपके भीतर घूम रही है लेकिन वह बाहर आकर ख़ुद को जाहिर नहीं करना चाहती. आप उसे भी परेशान कर देते हैं जिसे आप चाहने लगे हैं. आप अपनी ही कही बातों को ख़ारिज करते हैं. आप क्या क्या कह जाते हैं आपको ख़ुद नहीं मालूम. फिर भी वह आपके साथ बना हुआ था/है, क्योंकि वह जानता है कि आप ठीक नहीं हैं. इसलिए सम्भावना यह है कि वह जिसे आप चाहने लगे हैं अब 'था' में रहने लगा है. लेकिन उसे भी यह नहीं पता कि आप अपनी आवाज़ कुछ रोज़ पहले कैसे खो चुके हैं! है न भयानक? यह बात आपको सिर्फ आपको और पहले पैराग्राफ़ में आई दोस्त को पता है. शायद आपका मानस भी यह बात जानता है. एक एक कोशिका भी.
आवाज़ खो जाने से क्या होता? बहुत कुछ! आपकी आँखों को बात करनी पड़ती है. उन्हें हर एहसास जाहिर करना पड़ता है. आँखों को हर रोज़ चौकन्ना रहना पड़ता है कि कहीं आवाज़ खो जाने के बारे में किसी को पता न चल जाए. आप फैले हुए आसमान के नीचे जाते हैं और उसे देखते हैं. लेकिन इस दौरान आप भूलते भी हैं. जैसे आप भूल गए कि आँखों का असली काम क्या होता है? आप भूल गए कि आपने फ्रिज का दरवाज़ा कौन से सामान को निकालने के लिए खोला था. आप कंफ्यूज हो जाते हो. आपकी कन्फ्यूज़न की गवाही आपका ख़ुद का कमरा देता है, क्योंकि वह आपकी तरह ही बिखरा पड़ा हुआ है. वह भी फीका सा पड़ा हुआ कहीं गुम हो चुका है. आपने कुछ दिन पहले ही यह तय किया था कि इस कमरे की दीवार को यह रंग देंगे, तो कितनी अच्छी फीलिंग आया करेगी. लेकिन आपकी योजना मर गई क्योंकि आप 1 मार्च की तारीख में दंगे के बीच में घिरे हुए थे, आप बहुत सी मौतों की ख़बरों से गुज़र रहे थे और फिर इस बीमारी के खौफ़ में जी रहे हैं. लेकिन यहाँ खौफ़ से भी गहरी बात है. वास्तव में आवाज़ जाने के कारण के पीछे कई कारण हैं. एक यह भी है कि जो लिस्ट आपने संक्रमित लोगों की देखी उसमें वे बच्चे भी शामिल हैं, जिन्हें अक्सर आप शाम के वक़्त खेलते हुए देखते थे. शोर मचाते हुए पाते थे. शायद उन बच्चों ने चिड़ी या फुटबॉल से मारा भी होगा. शायद किसी ने चिल्लाकर कहा होगा- 'दीदी जल्दी हटो! आपको बॉल लग जाएगी.'
आप अभी उन बच्चों की आवाज़ को अपने भीतर इकठ्ठा कर रहे हैं. हर उस बच्चे के दर्द को भी अपने अंदर रख रहे हैं जो लॉकडाउन के चलते रास्ते में मर गए. कुछ भूख से भी मर रहे हैं. लग रहा है आवाज़ जाने का ये भी एक और कारण है. फ़िलहाल ठीक से समझ नहीं आ रहा कि आवाज़ गुम कैसे हो गई? दोस्त के अलावा किसी को नहीं बताया कि आवाज़ चली गई है. लोग इसे ढोंग समझें शायद. बाक़ी जाने क्या क्या..! लेकिन सच्चाई तो यही है कि आवाज़ चली गई.