अगर मुझे अपने बैकग्राउंड के बारे में मालूम होता तो मैं यहाँ नहीं होती. यह बैकग्राउंड होता क्या है?
फेसबुक पेज पर मैं मैसेज नहीं देखती और न ही जल्दी कभी जवाब देती हूँ. यहाँ बस कुछ बेहतर साझा करने की कोशिश है. शुरू में कुछ दोस्तों को मैसेज कर, लाइक के लिए कहा भी था लेकिन अब ऐसा नहीं करती. अगर ठीक लगता है तो जुड़ें वरना कोई बात नहीं. unlike कर दें या dislike जो भी है. मुझे ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता. कोरोना वायरस का वक़्त है. उसे देखते हुए आप जीवन के किस मोड़ पर खड़े हैं और बाक़ी किस मोड़ पर, उस बैकग्राउंड को समझें. सामूहिकता में कैसे कोरोना वायरस, सरकारी तंत्र, लापरवाही, नुकसान पहुँचा रहा है उसको जाने. महामारी क्यों प्राकृतिक कही जा रही है जबकि इसका पूरा ज़ोर इंसानों से जुड़ा हुआ है?
आप सोचिये न, जो लोग मर रहे हैं वे क्या बैकग्राउंड साथ लेकर गए? कभी उनकी जगह ख़ुद को रखकर सोचिये कि मौत कितनी ताक़त के साथ आती है और मौत के जहाज पर न दिखने वाले वायरस के साथ उठाये ले जा रही है. उस बच्ची और उसके पीछे जो बच्ची ब्लर हो गई है, का सोचिये, जो सिर पर भारी बैग ढोकर घर जा रही है. घर कैसे जरुरी से लगने लगे हैं! आपको लगेगा कि घर एक छतरी में तब्दील हो रहा है.
दुनिया क्या पिघल रही है? यहाँ बर्फ नहीं पिघल रही. बल्कि मुझे लगता है लोग पिघल रहे हैं. ग़रीब, दलित, औरतें, मजदूर, बीमार, बुज़ुर्ग, सब पिघल कर लोहे की तरह पृथ्वी के केंद्र में जमा दिए जाएंगे. और रह जाएंगे वो लोग ऊपर, जिन्होंने वेंटिलेटर्स ख़रीद लिए हैं. जिन्होंने अनाज की काला बाज़ारी शुरू कर दी है. जिन्होंने बेहथियार डॉक्टरों को आगे कर दिया है, न दिखने वाले वायरस के साथ युद्ध में. आपको पता है, मर जाने के बाद किसी भी तरह का बैकग्राउंड नहीं बचता. हम कहानियों लायक बचेंगे भी या नहीं, मुझे इस बात भी शक है. जबकि कहानियाँ इंसान की सबसे तरल दोस्त होती आई हैं. ग़रीबों के हमदर्द के रूप में चाहे कोई आया हो या नहीं, ये गीत और कहानियाँ ही थीं, जिन्होंने हमें इतिहास और मिथक में गुमशुदा होने से बचा लिया.
दुनिया क्या पिघल रही है? यहाँ बर्फ नहीं पिघल रही. बल्कि मुझे लगता है लोग पिघल रहे हैं. ग़रीब, दलित, औरतें, मजदूर, बीमार, बुज़ुर्ग, सब पिघल कर लोहे की तरह पृथ्वी के केंद्र में जमा दिए जाएंगे. और रह जाएंगे वो लोग ऊपर, जिन्होंने वेंटिलेटर्स ख़रीद लिए हैं. जिन्होंने अनाज की काला बाज़ारी शुरू कर दी है. जिन्होंने बेहथियार डॉक्टरों को आगे कर दिया है, न दिखने वाले वायरस के साथ युद्ध में. आपको पता है, मर जाने के बाद किसी भी तरह का बैकग्राउंड नहीं बचता. हम कहानियों लायक बचेंगे भी या नहीं, मुझे इस बात भी शक है. जबकि कहानियाँ इंसान की सबसे तरल दोस्त होती आई हैं. ग़रीबों के हमदर्द के रूप में चाहे कोई आया हो या नहीं, ये गीत और कहानियाँ ही थीं, जिन्होंने हमें इतिहास और मिथक में गुमशुदा होने से बचा लिया.
वैसे मैं अब अपने बैकग्राउंड को खोजकर लाऊंगी, ताकि आगे कहीं कोई उसके बारे में कोई क़िस्सा खिसका सके. कोई बता सके कि एक लड़की हुआ करती थी और...
मुझे मैसेज भी कीजिए तो उसमें कोई रचनात्मक सवाल कीजिए. किसी किताब का ज़िक्र कीजिए. किसी पेंटिंग की बात कीजिए. किसी कौतुहल को खोज लाकर उसकी बात कीजिए. बीदोवन की पांचवीं और नौवीं सिम्फनी की बात कीजिए...उन आत्मकथाओं की बात कीजिए जो कभी लिखी ही नहीं गईं या जिन्हें लिखने से रोक दिया गया. उस आदमी की ख़ामोशी की बात कीजिए, जिनमें वह ख़ूब बातें किया करता है...अरे बहुत कुछ है...
मेरा कोई बैकग्राउंड अभी तक नहीं है. मिलते ही बता दूंगी.
-----------------------
Vincent van Gogh
The Parsonage Garden at Nuenen, 1884 (30.03.20, सोमवार को चोरी हो गई है, यह पेंटिंग)
No comments:
Post a Comment