भक्ति के कितने रूप हैं! भक्तों और भक्ति का जमाना है। चमत्कार को नमस्कार कीजिये। चित्रगुप्त साक्षात यू पी के स्वास्थ्य मंत्री से मिले और मौत के महीने का नाम प्रकट किया। ऑक्सीज़न-फॉक्सीजन तो आपका और हमारा भ्रम है। यह नई खोज है या आविष्कार, जो भी है किताबों में दर्ज़ करने लायक है। समझ तो साहब बस यह नहीं आ रहा कि मौत का हैपी बड्डे मनाया जाये या फिर जन्म का!
पिछले दिनों 'द इजीप्शियन' पढ़ते हुए एक पंक्ति मुझे बहुत अच्छी लगी। उसमें लिखा था - 'मौत असाधारण बीमारी में दयालु मित्र की तरह जीवन को ले जाती है।' सच है। जिनको लाइलाज़ बीमारी होती है उन्हें ही इस बात का पता होता है। एक बार बहुत पहले किसी अखबार में एक विदेशी लड़की की एक अपील को भी पढ़ा था। उसे एक लाइलाज़ बीमारी थी। उसे बहुत दर्द होता था। जिस राज्य में वह रहती थी वहाँ खुद के लिए मौत मांगने का और उसकी इजाजत देने का संविधान में प्रावधान नहीं था। अतः वह अपने जगह को भी बदलने की इच्छा जता चुकी थी। भारत में गरीबों के लिए मौत अब शायद सबसे अच्छे मित्रों में शामिल कर दिया गया है। हैरत न कीजिये कि इसमें देशभक्त सरकार का ही हाथ है। जिन बच्चों को ऑक्सीज़न नहीं मिली, क्या वे भी इसी तरह मौत मांग रहे होंगे या तड़पने में मांगने का खयाल नहीं आया होगा? आखिर उनका गुनाह कोई छोटा नहीं था। गरीब जो पैदा हुए थे।
सुनो बच्चों! तुम बहुत सही जगह से आज़ाद हुए। यहाँ लोग पहले हिन्दू और मुसलमान हैं। ठाकुर और अछूत हैं। अमीर और गरीब हैं। अगर कुछ बच गया तो इंसान हो पाते हैं। वरना यहाँ इंसानियत का कोई चांस नहीं। ये देश बस 'वंदे मातरम् से लेकर भारत माता की जय' तक सिमटता हुआ दिखता है आजकल। यहाँ गद्दारी इस बात से तय नहीं होती कि तुमने कितने घौटाले किए बल्कि इस बात से तय होती है कि तुम 'जन गण मन' पर खड़े नहीं हुए। हाँ, यकीन करो यही था वह देश जहां से तुम्हें मुक्ति मिल गई।
कौन कहता है कि विकास नहीं हो रहा। साहब बहुत विकास हो रहा है जो आपको दिख भी रहा है। उदाहरण देखिये न! आप बहुत मासूम जनता हैं। आपको तो कुछ ख़बर ही नहीं।
पिछले दिनों 'द इजीप्शियन' पढ़ते हुए एक पंक्ति मुझे बहुत अच्छी लगी। उसमें लिखा था - 'मौत असाधारण बीमारी में दयालु मित्र की तरह जीवन को ले जाती है।' सच है। जिनको लाइलाज़ बीमारी होती है उन्हें ही इस बात का पता होता है। एक बार बहुत पहले किसी अखबार में एक विदेशी लड़की की एक अपील को भी पढ़ा था। उसे एक लाइलाज़ बीमारी थी। उसे बहुत दर्द होता था। जिस राज्य में वह रहती थी वहाँ खुद के लिए मौत मांगने का और उसकी इजाजत देने का संविधान में प्रावधान नहीं था। अतः वह अपने जगह को भी बदलने की इच्छा जता चुकी थी। भारत में गरीबों के लिए मौत अब शायद सबसे अच्छे मित्रों में शामिल कर दिया गया है। हैरत न कीजिये कि इसमें देशभक्त सरकार का ही हाथ है। जिन बच्चों को ऑक्सीज़न नहीं मिली, क्या वे भी इसी तरह मौत मांग रहे होंगे या तड़पने में मांगने का खयाल नहीं आया होगा? आखिर उनका गुनाह कोई छोटा नहीं था। गरीब जो पैदा हुए थे।
सुनो बच्चों! तुम बहुत सही जगह से आज़ाद हुए। यहाँ लोग पहले हिन्दू और मुसलमान हैं। ठाकुर और अछूत हैं। अमीर और गरीब हैं। अगर कुछ बच गया तो इंसान हो पाते हैं। वरना यहाँ इंसानियत का कोई चांस नहीं। ये देश बस 'वंदे मातरम् से लेकर भारत माता की जय' तक सिमटता हुआ दिखता है आजकल। यहाँ गद्दारी इस बात से तय नहीं होती कि तुमने कितने घौटाले किए बल्कि इस बात से तय होती है कि तुम 'जन गण मन' पर खड़े नहीं हुए। हाँ, यकीन करो यही था वह देश जहां से तुम्हें मुक्ति मिल गई।
भारत में गरीबों का जीवन बहुत सस्ता है। बहुत सस्ता है यहाँ किसी गरीब बच्चे का जीवन। यहाँ लोग जो नेता भी हैं, अव्वल दर्जे के खूंखार हैं। जो देश अपनी आज़ादी के 70 बरसों का केक काटने जा रहा है, उसे उत्सव मनाने से पहले अपने गिरेबाँ में झांक कर देख लेना चाहिए। अभी की ट्रेंडिंग ख़बरों पर यकीन करें तब मरने वालों की संख्या 72 हो चली है। जरा सोचिए जहां 15 अगस्त से चंद रोज़ पहले ही इतनी मौतें हो चुकी हैं, वहाँ कैसे कोई देश 72 मौतों के बाद भी जश्न मना सकता है? मानवता क्या मंगल ग्रह का अलंकार है या पृथ्वी सिर्फ़ और सिर्फ़ हथियार को सहेज कर खरीदने वाले देशों का गुट बन कर रह गई है।
प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री ने मरने का एक महीना निश्चित कर दिया है। आप किस महीने में जन्म लेंगे इससे ज़्यादा महत्व अब इस बात को दिया जा रहा है कि आप मरेंगे किस महीने में। आसमान के चित्रगुप्त ने सीधे इनसे संपर्क साधा और इन्हें वह आसमानी खुफिया रहस्य बताया कि मौतें अगस्त में ही हुआ करती हैं। मंत्री जी इतने डाटा बख्तर बंद थे, कि डाटा बताते समय उनकी आँख में पानी भी नहीं उतरा। ऐसा आदमी मैंने टीवी पर पहली बार देखा।
हम एक देश के रूप में असफल हैं। हम एक लोकतन्त्र के रूप में भी असफल हैं। हम एक स्वस्थ मीडिया के दायरे में भी रहने में असफल हैं। हम हर जगह तो फेल ही हैं।
तो सफलताएं क्या हैं फिर?
विदेशी यात्राएं ही यहाँ सफलता है। एक देश से दूसरे देश जाना सफलता है। लड़की का पीछा करता हुआ 'विकास' सफलता है। कब्रिस्तान और श्मशान घाट यहाँ सफल हैं। बलात्कार यहाँ सफलता है। हिन्दू और मुसलमान सफलता है। बेरोजगारी सफलता है। अमीर और गरीब की खाई गहरी है, यह सफलता है। बैंकों का दिवालिया सफलता है। विजयमाल्या जैसा आदमी भारत की नई सफलताओं में से एक है।
हम एक देश के रूप में असफल हैं। हम एक लोकतन्त्र के रूप में भी असफल हैं। हम एक स्वस्थ मीडिया के दायरे में भी रहने में असफल हैं। हम हर जगह तो फेल ही हैं।
तो सफलताएं क्या हैं फिर?
विदेशी यात्राएं ही यहाँ सफलता है। एक देश से दूसरे देश जाना सफलता है। लड़की का पीछा करता हुआ 'विकास' सफलता है। कब्रिस्तान और श्मशान घाट यहाँ सफल हैं। बलात्कार यहाँ सफलता है। हिन्दू और मुसलमान सफलता है। बेरोजगारी सफलता है। अमीर और गरीब की खाई गहरी है, यह सफलता है। बैंकों का दिवालिया सफलता है। विजयमाल्या जैसा आदमी भारत की नई सफलताओं में से एक है।
कौन कहता है कि विकास नहीं हो रहा। साहब बहुत विकास हो रहा है जो आपको दिख भी रहा है। उदाहरण देखिये न! आप बहुत मासूम जनता हैं। आपको तो कुछ ख़बर ही नहीं।
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