Monday, 21 August 2017

फ़र्माइशी प्रेम पत्र (कल्पना)

जाने कहाँ से वह जगह अपनी खूबसूरती के साथ इस सुनसान जगह में उभर आई थी, अचानक। ऐसी भी जगह होती है कोई यक़ीन नहीं कर सकता था। कभी देखी-सुनी नहीं थी। आज तक कोई दादी और नानी की कहानी भी उस जगह का वर्णन नहीं पाई थी। किसी लेखक के जेहन में भी वह जगह, अपनी जगह नहीं बना पाई थी। किसी जवान होती लड़की या जवान लड़के के दिल में भी वह जगह अभी तक नहीं आई थी। न जाने वह जगह किन हाथों की रचना थी? इस सवाल का जवाब कोई नहीं जानता सिवाय उन फूलों और जानवरों के जो वहाँ के नागरिक थे। बहुत ही कम संख्या में वहाँ इंसान भी थे जो दिल की तरंगों से बात कर लिया करते थे। 

दूर से देखने पर वह धरती के ठीक ऊपर जमा हुए नीले पानी के रंग से सराबोर दिखाई पड़ती थी। वहाँ के पत्थर भी माँ की तरह हाथ पसार कर अपना प्यार लुटाते थे। फूलों ने कुछ इस तरह से अपनी रंगत विकसित की थी कि वे रंग धरती पर उगने वाले रंगों से अलग नशीले और सम्मोहित करने वाले थे। ज़मीन पर उगी मुलायम घास मानो जादुई कालीन हो। एक जगह रहने की बजाय चोकोर टुकड़ों में यहाँ वहाँ तितलियों के लिए बिछ जाया करती थी। उस जगह पर किसी का भी कब्ज़ा नहीं था। उसकी घेराबंदी 12 घटों तक रहने वाले इंद्रधनुष से की गई थी। उसे वैसे किसी तरह का नुकसान नहीं था फिर भी डर था कि धरती के अलग अलग धर्म के लोग व विचारधारा वाले लोग जबरन न घुस आयें इसलिए इस तरह की घेरा बंदी दिन के बारह घंटे इंद्रधनुष के माध्यम से की गई थी।

                                                               By- Richard Burlet 

बाक़ी बारह घटों की रखवाली एक सफेद झबरीली कुतिया के हवाले की गई थी जो बहुत ही मुस्तैद थी। वह अपने बारह घंटों को गुर्रा गुर्रा कर बिताया करती। पर इसका यह मतलब कतई नहीं था कि वह खूंखार थी। वह तो महज एक झबरीली कुतिया थी जो धरती से कुछ उठी हुई उस खूबसूरत जगह पर बारह घटों के लिए पहरा देती थी। उसका वह पवित्र श्रम था। बदले में वह सब के प्रेम का वह हिस्सा ले लेती थी जो सिर्फ उसके लिए ही था। मनुष्य से पहले जानवरों के अधिकारों की बात की जाती थी। वहाँ कई अजीब-ओ-गरीब जानवर थे जो बात भी कर लिया करते थे। हैरत इस बात कि थी कि इस बात पर किसी को हैरत नहीं थी। 

बहुत कम संख्या में रहने वाले लोग छोटे छोटे मुहल्ले में बंटे हुए थे पर वे तरंगों की बातचीत के चलते आपस में जुड़े हुए भी थे। सभी की अपनी अपनी दिनचर्या तय थी और यह पूरी तरह से लोगों पर निर्भर था कि वह उसे कैसा बनाना चाहते हैं। इस बात के पीछे कोई मनाही न थी। सभी अपना जीवन चलाने के लिए आज़ाद थे। वे जो चाहे जैसा काम कर सकते थे। अगर किसी को घास की उड़ने वाली चटाई बनाकर बाज़ार में बेचने का दिल है तो वह जरूरत के मुताबिक़ बेच सकती और सकता था। ठीक इसी तरह का क़ायदा अन्य लोगों व कार्यों पर भी लागू था। 

शहर के बीच के गोल वाले हिस्से में एक मिनी बाज़ार लगा करता था। उस बाज़ार में तमाम तरह की दुकानें थीं। छोटी टॉफी से लेकर शहद या जादू की पतली वाली छड़ियाँ तक वहाँ मिल जाया करती थीं। लेसदार कपड़ों के अलावा हर वह कपड़े जो वहाँ बिक सकते थे, दुकानों पर सजे रहते थे। बाज़ार की अपनी कुछ मामूली शर्तें थीं कि सभी अपनी दुकान का नाम हाथ से खूबसूरत अक्षर से लिखकर ही लगाएंगे। इस काम में नेफर बहुत अच्छी थी जो अपने पिता के साथ प्रेम पत्र लिखने का काम करती थी। दिन में चार पत्र ही दोनों पिता बेटी के लिए काफी थे। उनसे उनकी जिंदगी और उसके जरूरत के ख़र्च आराम से निकल जाया करते थे। वहाँ जमाखोरी जैसे रिवाज़ अभी तक नहीं उभरे थे। या फिर उन्हें इसकी जरूरत नहीं थी। 

नेफर ने अपने घर में तमाम तरह की प्रेम कहानियों, कविताओं, नाटकों, उपन्यासों, फ़िल्मों की एक अच्छी ख़ासी ब्राउन लाइब्रेरी बना ली थी। ब्राउन इसलिए क्योंकि वह मिट्टी रंग से पुती हुई जगह थी। और तो और किताबों के ऊपर के कवर भी मिट्टी रंग के ही थे। वह इस किताबघर से हर संभव मदद लेती थी जो उसे प्रेम पत्रों को लिखने के लिए अक्सर पड़ा करती थी। पर प्रेम पत्र का अंतिम ख़ाका उसके पिता की अनुभवी नज़रों से होकर ही गुज़रता था। उन्हों ने बेहद कम उम्र से इस काम में क़दम रख लिया था जब नेफर का जन्म भी नहीं हुआ था। यह बात अलग है कि इस जगह में कोई नहीं जानता था कि उनकी वास्तविक उम्र आख़िर थी क्या। नेफर को भी अपनी उम्र का कोई खास अंदाज़ा नहीं था। चार प्रेम पत्रों को लिख लेने के बाद वह अपना बहुत सा समय अपने दोस्तों के साथ गुजारती थी। उसके दोस्त भी कुछ इसी तरह के काम में लगे हुए थे। 

वह शहर अजीब होते हुए भी अजीब नहीं था उसकी यही खासियत थी। शाम के समय धरती से देखने पर लगता जैसे किसी ने नीली रंग की पनियल बॉल आसमान से सफ़ेद धागे में लटका दी है। पर सुबह होते ही वह हरी घासदार गोल जगह में तब्दील हो जाती। सबसे बेहतर वह दिन में लगती जब इंद्रधनुष के रंग चारों ओर फैले दिखते और लगता कि जमीन से कुछ ऊपर प्रकृति कुछ रंगीन कपड़े पहन कर नाच रही है। उस जगह के भीतर एक अलग ही तरह का जीवन चल रहा था जो बहुत रोचक और दिलचस्प था। जहां प्रेम पत्र लिखने की गुलाबी दुकान थी।  

...जारी है। 
   





No comments:

Post a Comment

21 बरस की बाली उमर को सलाम, लेकिन

  दो साल पहले प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली लड़की से मेरी बातचीत बस में सफ़र के दौरान शुरू हुई थी। शाम को काम से थकी हारी वह मुझे बस स्टॉप पर मिल...