वैसे तो क़िस्मत वाली बात नहीं करनी चाहिए. लेकिन अभी कहना ही पड़ेगा. अगर आपका एरिया सील्ड एरिया नहीं है तो आप बहुत क़िस्मत वाले हैं. जी हाँ, आपकी क़िस्मत शानदार है. आप सुरक्षित हवा में साँस ले रहे हैं. आपको खाने पीने का सामान मिल जा रहा है. आपको पीने के पानी की चिंता नहीं है तो आप बड़े भाग्य वाले हैं. अगर आपको नहाने धोने का पानी मिल जा रहा है तो आप क़िस्मत वाले हैं. अगर आप सारी दुनिया के दुःख भूलकर रामायण और महाभारत का मज़ा ले रहे हैं तो आप हीरा क़िस्मत के मालिक हैं. अगर आपके अपने सब ठीक हैं तो भी आप अच्छे सितारे वाले हैं. अगर आपके बच्चे अभी भी ख़ुश होकर आपके आगे खेल रहे हैं तो आप क़िस्मत वाले हैं.आप लकी हैं
ये क़िस्मत आपके लिए तभी तक है जब तक आप घर में हैं. घर से मत निकलिए. एक रोटी कम खा लीजिए लेकिन घर से बाहर मत निकलिए. हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं. जो अनुभव कर रही हूँ वह आप लोगों के लिए लिख रही हूँ. हम सील्ड हो चुके हैं. पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है. दुकानें बंद हैं. गलियों के मुहाने पर पुलिस बैठी हुई है गिद्ध की नज़र लिए हुए कि कोई अंदर से बाहर न आ जाए. पुलिस वालों में भी दहशत है. बहुत दहशत. वे दिन रात काम कर रहे हैं. वे हमारे यहाँ आये और टेस्ट के लिए ले जाए जा रहे लोगों की संख्या बता गए. वो ये भी बोले कि तुम सब मर सकते हो अगर घर में नहीं रहे. मुझे जिसने यह बात बताई वे बोले कि पुलिस वाला बेहद हताशा में था. शायद अंदर से डरा भी हुआ था. हमें नहीं पता कि ले जाए गए हमारे निकट पड़ोसियों को कहाँ ले जाया गया है. लेकिन जो संक्रमित लोगों की सूची आई है उनमें बच्चे भी शामिल हैं, हमें यह पता है. महज सात साल के बच्चे भी. कुछ दिनों से जो दहशत, डर और धक्का लगा वो इन्हीं बच्चों और बुज़ुर्ग लोगों के लिए लगा. बहुत मुश्किल है साँस लेना इस तरह. अंदर यह एहसास आ गया है कि आप चूहों की तरह हैं और आप चाहे संक्रमित हैं या नहीं लेकिन आपको पिंजरे में रखा गया है. आपकी जान का मूल्य सिर्फ आपको है. सरकार पर कुछ नहीं कहना चाहती. मुझे नहीं पता कि कहाँ क्या वे लोग कर रहे हैं? शायद बहुत ही कर रही है. यह पोस्ट सरकार पर है भी नहीं.
मुझे कई दिन लग गए इस पोस्ट को लिखने में. मैंने इस दौरान कई लोगों को रोकर परेशां भी किया. मैं निरंतर अपने लोगों से संवाद में हूँ. तब भी मानसिक स्तर हिला रहता है. अभी कुछ स्थिरता है तो आप लोगों के लिए यह पोस्ट लिख रही हूँ. आप लोग घर से बाहर मत निकलिए. आपको नहीं पता कि हम दुनिया से कटा हुआ महसूस कर रहे हैं. हमारे घरों के ऊपर जो आसमान है बस वही रह गया है जो हमें यह बताता है कि बाहर की दुनिया से आप आसमानी तौर पर जुड़े हुए हो. बस आसमान ही है जो हमारी ज़िन्दगी में बाहर की दुनिया को जोड़े हुए हैं. हम सभी लोग (जो आसपास के घर हैं) न तो हँसते हैं और न रोते हैं. बस एक जबरन ओढ़ी हुई चुप्पी और दहशत के साथ जी रहे हैं. जो लोग चिल्लाकर 'सी फ़ूड' खाने की सलाह दे रहे हैं, बेशक उनकी सलाह ठीक होगी पर हमारे यहाँ के लोग अपनी भूख को इसलिए जिंदा किये हुए हैं कि वे अगर इस आपदा में बच गए तो ठीक है वरना स्वाद के लिए कोई नहीं खा पा रहा. हम सील्ड एरिया के लोगों को किसी की हमदर्दी नहीं चाहिए. इतनी उम्र और दहशत देखकर हमने एक दूसरे को हमदर्दी देना सीख लिया है. बस हम यह बताना चाहते हैं कि आप लोग अपनी ख़ुशकिस्मती बरक़रार रखना चाहते हैं तो घर पर रहिये. अपने लोगों के लिए रहिये. समाज के बाकि लोगों के लिए रहिये.
एक बात और. न्यूज़ चैनल्स ने हमारी जगह की रिपोर्टिंग कि उसमें एक व्यक्ति को बार बार बोलते हुए कहा गया कि उसकी वजह से फ़ैल गया जबकि यह कहा जा सकता था कि अनजाने में उससे अन्य व्यक्ति संक्रमित हो गए. ये तोहमत सा फील दे रहा था. यहाँ किसी को ब्लेम मत कीजिए. मैंने नहीं किया. क्योंकि हम सब इस वायरस के शिकार हैं. वे ख़ुद सबसे पहले इसकी जद में आए और बाक़ी उनके संपर्क में होकर संक्रमित हो गए. मुझे नहीं लगता की दोष देखकर हम कुछ कर और कह पाएंगे. जो हो चुका है उससे मिटाया नहीं जा सकता. मेरा चाहना यह है कि वे सब ठीक होकर वापस अपने घरों में आ जाएं.संक्रमित लोगों को प्यार, हौसले औरसांत्वना की ज़रुरत है.
एक बार और कहूँगी, आप लोग घरों से बाहर मत निकलिए. हो सकता है कि आपके कारण आपको, आपके घर के लोगों और बाहर के लोगों को हमारी तरह हमारे ही एरिया में कैद कर दिया जाए. यह महसूस करना ही किसी व्यक्ति को मारने जैसा है कि वे जहाँ पैदा हुआ वह उसी जगह में कैद हो रहा है. मीठा बोलिए. कम बोल रहे हैं चलेगा. ग़ुस्सा न करें. रो लें. अपने दोस्तों रिश्तेदारों से बात कर लें. हर पल बेहतर जिएं. हमको नहीं पता कि हमारा क्या होगा? अगर हम बच भी गए तो शायद एक सदमा हमारे साथ उम्रभर रहेगा. अचानक से हम सील्ड, ब्लॉक्ड, बैरिकेड, पुलिस, निगरानी, संक्रमण, सेनिटाज़ेशन, रेड जोन, रिस्क ज़ोन, संक्रमित एरिया, हॉटस्पॉट जैसे शब्दों से पहचाने जाने लगे हैं. लेकिन हम इन शब्द शब्दावली के साथ भी एक धीमी सी ज़िंदगी जी रहे हैं. हम बहादुर हैं. हम साथ साथ हैं!
ये तो दर्दनाक, ख़ौफनाक मंजर है। बहुत ही ज्यादा दुःख हुआ ये सुनकर कि आपके आस-पास तक ये महामारी आ चुकी है। हम प्रार्थना करते हैं कि यथाशीघ्र इसका कहर कम होने लगे। सावधानी और पृथक्त्व ही एकमात्र उपाय है सरकार के पास और हमारे पास भी।
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ReplyDeleteये मेरा ब्लॉग है ज्योति जी। कृपया पधारें