Tuesday, 16 August 2016

...लेकिन मैंने 'लेकिन' को ही चुना

...लेकिन मैंने आज ब्लॉग खोलने और कभी कभी कुछ लिख लेने की बुलबुले वाली चाहत को एक रूप दे ही दिया। ब्लॉग का नाम मुझे किसी दोस्त ने सुझाया था। उस समय तो ध्यान नहीं दिया लेकिन अब जब मौका मिला है तो इसी सुझाव पर इसका नामकरण करना उचित समझा। उसने मुझे यह बताया था कि इस शब्द में बहुत कुछ समेटा जा सकता है। कहानी खत्म हो भी जाये तो लेकिन कहकर शुरू कर सकती हो। लेकिन में एक आशा छुपकर बैठती है। लेकिन दो चार जोड़ी सुनने वाले कान तैयार करवाने वाला शब्द भी है। यह दिमाग पर जोर डालने के लिए कई बार गुजारिश करता है। कई बार मजबूर करता है कि यादों के कुएं में झांक लो बंधु। कई दफे छुपे बैठे विकल्पों की खबर भी दिलवा देता है। यह अपनी बात को मुकम्मल न सही पर रखने की ओर ले जाता है। लेकिन से जुड़े बहुत से हमशक्ल शब्द हैं, पर, किन्तु, परंतु, मगर आदि मुझे याद नहीं इस समय। सभी शब्द थोड़े-मोड़े अलग होंगे। लेकिन मैंने 'लेकिन' को ही इसलिए चुना कि आम बोलचाल में यह बहुत कुछ सुलझे हुए जिंदगी के बयान रखता है। कुछ बयान बहुत छोटे और अदृश्य होते हैं।  मेरा मकसद इन्हीं बयानों की बुनावट करना है।
 

2 comments:

21 बरस की बाली उमर को सलाम, लेकिन

  दो साल पहले प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली लड़की से मेरी बातचीत बस में सफ़र के दौरान शुरू हुई थी। शाम को काम से थकी हारी वह मुझे बस स्टॉप पर मिल...