Tuesday, 11 October 2016

छिटके हुए किरदार

कुछ किरदार छिटक जाएँ इससे पहले उन्हें लिख लेना चाहिए।

भीड़ का आलम गुनहगार है 
भीड़ के अलावा
सब कुछ ओझल है...

                                                              फोटो गूगल की देन



एक शख्स हुआ करता था। अपनी कमीज़ में एक जेब लिए हुए। जेब में हर महीने की पहली तारीख की पगार दस्तक दिया करती थी। वह खुशी से खनक जाया करता था।...घर लौटते वक़्त अपनी पत्नी और बच्चों के लिए कुछ खरीद लाया करता था। कई बार जेब भी कट जाया करती थी। महीने की पहली तारीख को शहर में जेब कतरों की भी संख्या बढ़ जाया करती थी।
ये शख्स और जेब कतरे दोनों गायब हो गए। मुझे दोनों की चिंता हुई। जी हाँ, चिंदी चोर की भी।  
लेकिन अब यह शख्स दिखाई नहीं पड़ता। किसी से पता पूछा तो बड़े कठोर पते हाथ में आए। किसी ने सड़क के किनारे बताया तो किसी ने बड़े बड़े फ्लाई ओवर के नीचे बताया। मैं, जब गई तो सब बातें बेकार और बेबुनियाद पाईं। मैंने उस शख्स की कमीज़ में जेब खोजने की भरसक कोशिश की। लेकिन वह वहाँ नहीं थी। मुझे सुकून हुआ। उसके करीब तो खाली थाली और मरी मक्खियाँ पड़ी थीं।  
मुझे फिर से उसके पते की तलाश करनी है।
(जेब कतरे के पते के बारे में पता चला कि वह तो बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में रहता है। मेरी वहाँ जाने की हिम्मत नहीं हुई।)  

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