रटना याद करना नहीं होता। याद तो वह है जिसे भुला नहीं जा सकता, जो ज़ेहन में बस जाता है, यह गणित का कोई सूत्र नहीं होता, यह कोई रसायन विज्ञान का तत्व नहीं होता। याद में कुछ भी समाहित हो सकता है। किसी अजनबी का चेहरा भी हो सकता है, किसी दुर्घटना का दर्द भी हो महसूस हो सकता है। कर्म और कुकर्म से जुड़ा पछतावा और खुशी भी शामिल हो सकती है। याद में पहला प्यार हो सकता है या अधूरे प्यार की पूरी कहानियाँ भी मिल सकती है। याद में 'वाद' की जगह नहीं है पर अगर कोई किसी चिंतन विचारधारा से जुड़ा हुआ है तब 'यादवाद' से इसे समझा जा सकता है। कम्प्युटरधारियों के लिए किसी खाते का भूला हुआ पासवर्ड याद की गुफ़ा में ले जा सकता है। और भी बहुत कुछ है याद में। मैंने अपने 'याद बैंक' से यह कविता आज केश की है।
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे, कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जायेंगे हम बहता जल पीने वाले मर जायेंगे भूखे प्यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक कटोरी की मैदा से स्वर्ण श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरु की फुनगी पर के झूले ऐसे थे अरमान कि उड़ते नील गगन की सीमा पाने, लाल किरण सी चोंच खोल चुगते तारक अनार के दाने होती सीमाहीन क्षितिज से इन पंखों की होड़ा होड़ी, या तो क्षितिज मिलन बन जाता या तनती सांसों की डोरी
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न भिन्न कर डालो, लेकिन पंख दिए हैं, तो आकुल उड़ान में विघ्न न डालो (शिवमंगल सिंह 'सुमन')
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सभी चित्र गूगल से लिए गए हैं- आभार
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Saturday, 22 October 2016
याद बैंक
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