सुन मेरे बंधु रे, सुन मेरे
मितवा, जरा ज़्यादा गाल न बजाओ। बातों के बतासे न फोड़ो। अब तो
हमें भी उकताहट होने लगी है आप सभी लोगों की ‘इलेक्ट्रोनिक
देशभक्ति’ देखकर। राजनेता और पार्टी भक्ति तो आप पैग बनाकर
पी और पिला रहे हैं पर उस शराब का इस्तेमाल कर आग क्यों लगाए जा रहे हैं। भला अपने
घर में भी कभी आग लगाई जाती है। आपका सवाल होगा कि मैं कौन बोल रही हूँ या बोल रहा
हूँ! वाजिब है कि इतनी अक्ल बाकी है कि सवाल पूछ पा रहे हो।
सुनो, ध्यान से सुनो-
...मैं वह आदमी बोल रहा हूँ जो अभी भी बिना टच वाले
मोबाइल फोन के टच के बिना रहता हूँ। वही नोकिया वाला फोन इस्तेमाल करता हूँ। मैं
बहुत पढ़ा लिखा नहीं। मैं कोई भी हो सकता हूँ। मैं साधारण सा मजदूर सुरेशवा भी हो
सकता हूँ, मैं आपके घर की जुड़ाई और चुनाई करने वाला राज मिस्त्री रामजतन भी हो सकता
हूँ जिसे आपने कभी पानी और चाय पिलाई होगी। मैंने आपका घर बनाया होगा लेकिन आपको
मेरा चेहरा याद नहीं होगा। हो ही कैसे सकता है! मेरा कोई फिक्स या जमा जमाया चेहरा
ही नहीं। मैं कभी सुबह बस न मिलने पर पैदल ही काम पर गुटों में बतियाते चला जाता
हूँ तो कभी शाम को लौटते समय बस से भी लटक कर घर वापस लौटने का जोखिम उठा लेता
हूँ। तभी मेरे मन में शिकायत के नाम पर कुछ खास नहीं होता। न सही समय पर मजदूरी
मिलने का गम मुझे खाता है और न मैं फेसबुक का इस्तेमाल कर किसी को गाली देता हूँ।
मैं सिंपल जीता ही हूँ। मुझे यही अच्छे से आता है। मेरे मुंह में धूल उड़ उड़कर जम
जाती है या जेठ में धूप मुंह क्या शरीर भी जला देती है फिर भी मैं मुंह नहीं
ढांपता। मैं काम पर जाता हूँ और आता हूँ। यही नहीं मैं भारत का नाम रोज़ रोज़ नहीं
ले पाता। मुझसे नहीं हो पाता यह सब। मैं गाँव ही बोल लेता हूँ। मैं इतना कम पढ़ा
लिखा हूँ। न समझ हूँ कि पढ़ी लिखी भाषा नहीं बोल पाता।
मैं किताब नहीं समझ पाता।
मैं खुद अपने जीवन की किताब में जीता हूँ। मेरे पास चाल और चलन वाली जीभ नहीं है।
मैं जो बोलता हूँ उसका वही मतलब होता है। मुझे क्या पता कि लक्षणा या अभिव्यंजना शब्द
शक्ति क्या होती है। जो हिन्दू रास्ते में टकरा जाये तो राम राम कर देता हूँ जो
मुसलमान भाई मिल जाये तो सलाम कह देता हूँ। मैं ऐसा जान बूझकर नहीं करता। मेरी तो
बनावट ही ऐसी है। मैं ऐसा ही हूँ। मुझे ट्विटर या हैश टैग क्या होता है समझ नहीं
आता। मुझे अपडेट शब्द का मतलब भी नहीं पता। मुझे देशभक्ति नहीं पता कि क्या होती
है। मैं अपने गाँव के रसु भगत को भक्ति समझ जाता हूँ। हाँ,
कबीर का नाम सुना है। कुछ दोहे भी पता है। जैसे बुरा जो देखन मैं चला...रुको भाई।
मैं अभी खाना पकाकर आता हूँ। परदेसी हूँ न। खुद ही पकाना पड़ता है। आए हो तो खाकर
जाना। बहुत दिन हो गए कोई मिला नहीं जिससे ठीक से बात नहीं हुई। रुको तुम्हारे लिए
चाय रख देता हूँ। दूध नहीं है। काली चाय पियोगे। अच्छी लगती है। रुको तो ज़रा, आता हूँ।
...मैं महीने का राशन इकट्ठे नहीं खरीदती। जरूरत जरूरत
पर पास की शीतल की दुकान से ले आती हूँ। हाँ, सरकार की तरफ से
गेहूं और चावल मिल जाता है पर, पूरा नहीं पड़ता। अच्छा जाने
दो। मेरे तीन बच्चे हैं स्कूल जाने वाले। ठीक से पढ़ते ही नहीं। मुझे उनकी बहुत
चिंता होती है। स्कूल में ठीक से पढ़ाया ही नहीं जाता। पैसा होता तो प्राइवेट स्कूल
में डाल देते। कुछ तो बन जाते। सरकारी में हाल खराब है। ट्यूशन भी लगवाया है फिर
भी इन्हें कुछ समझ नहीं आता। इन्हें तो फुर्सत ही नहीं कुछ सोचने या बच्चों को
डांटने की। काम में रहते हैं। कुछ दिन पहले ही मैंने दसवीं बार कहा था कि एक जोड़ी
कपड़े सिलवा लो। पर कहते हैं यह साल इन्हीं से निकल जाएगा। सुने तब न मेरी। मैं तो
सेल में से साड़ी खरीद लेती हूँ। 250 हो गया है दाम। पहले यही साड़ी 150 में मिलती
थी। महंगाई तो बढ़ती ही जा रही है। अभी परसों ही चूड़ी पहनने की सोची तो चूड़ीवाला 20
रुपये दर्जन बताने लगा। सोचा एक ही बार करवा चौथ पर पहन लूँगी। अब त्योहार ही
त्योहार आ रहे हैं। त्योहारों में मोहल्ले से लेकर बाज़ार तक रौनक आ जाती है।
अच्छा
लगता है, जब भी कोई त्योहार आता है। हमारे मोहल्ले में तो
सभी तरह के लोग रहते हैं। सभी हिन्दू...मुसलमान, पंजाबी, बंगाली। अभी कुछ दिनों पहले मलयाली भी आए
हैं। सब की सब नर्स हैं। अच्छा है। मोहल्ले में ऐसे लोग रहने चाहिए।...अभी कुछ दिन
पहले मेरा छोटा वाला बता रहा था कि अपने यू पी में किसी मुसलमान को मार दिया कुछ
कमीनों ने। पापी हैं। पाप बटोर रहे हैं। अरे कोई कुछ भी खाये किसी के बाप दादा का
क्या जाता है। मुझे तो डर भी लगने लगा है आजकल। मेरी सास जो थीं, वो दीपावली पर एक दीया आसपड़ोस के नाम भी जलाया करती थीं। सो मैं भी ऐसा
ही करती हूँ। एक दीया और जला देती हूँ कि सब ठीक ठाक रहें। जिंदगी का क्या ठिकाना
है। कब किसको क्या हो जाये। चाय पिएंगे आप लोग? शाम को कभी
कभी बना लेती हूँ। आए हो तो बैठो। अभी चाय बनाकर लाती हूँ। आराम से पिएंगे। फिर न
जाने आप कब आएंगे। इन्हें पता चला कि घर में कोई आया था और मैंने चाय नहीं पिलाई तो
गुस्सा करेंगे। आप आराम से बैठो... मैं अभी आई।
(किचन से) अरे कल टीवी पर दिखा रहे थे। हमारे सैनिकों
को मार दिया पाकिस्तान ने। बताओ उनके परिवार का क्या हाल हो रहा होगा। उनके जच्चा बच्चा
अब क्या करेंगे। मेरे तो आँसू आ गए। बताओ भला किसी को मारने से भी कोई जीतता है। हम
एक ही तो हैं। जाने इन लोगों को क्या आग लगी है? गरीब ही मरता
है। सैनिक ही सबसे महान है। अरे अपनी जान हम लोगों के लिए दे रहा है। उन्हीं के नाम
का दीया जलाना चाहिए। सबसे पवितर काम ये लोग ही कर रहे हैं। मुझे तो उन्हें देख कर
बहुत अच्छा लगता है।...मेरे छोटे वाले का शरीर काफी अच्छा है। हम तो चाहते हैं कि ये
सैनिक बन जाये। कुछ तो करेगा देश के लिए। अपनी मिट्टी ही सब कुछ होती है। चाहे कैसी
भी हो।...लो चाय पियो। गरम है। आराम से पियो।
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