Thursday, 13 October 2016

एक बनावट: साझी जगह

कुछ दिनों पहले किसी ने फेसबुक पर कमल मंदिर उर्फ बहाई मंदिर से जुड़ी एक पोस्ट साझा की थी। मुझे वह पोस्ट उतनी दिलचस्प नहीं लगी। उस पोस्ट को पढ़ने के बाद कमल मंदिर के बारे में कुछ लिखने का सोचा। सो आज दूसरी बार मैं इस कमाल की जगह पर पहुँच गई। यकीन मानिए मैं इसलिए इस जगह में नहीं गई थी कि अपने लिए या पूरी दुनिया के लिए कुछ मांग लूं। बल्कि इसलिए यहाँ पहुंची कि इस जगह की बनावट को देख सकूँ और महसूस कर सकूँ।

मैं शाम के समय यहाँ पहुंची। प्रवेश बंद होने से लगभग आधा घंटा पहले। मुझे इस बात की हैरानी हुई कि लोगों की बहुत बड़ी संख्या आज भी वहाँ पहुंची हुई थी। उनमें से मैं भी एक थी। लाइन बहुत लंबी और बहुत छोटी भी नहीं थी। लाइन के धीरे धीरे खिसकने की वजह से एक पुलिस वाला उत्तेजित होते हुए बोला, 'न जाने के कैसे मुर्दा लोग लाइन में खड़े हैं। दिल्ली के लोग अब शायद खाना न खावे हैं। सब के सब मरे हुए लाग रे हैं।' फिर क्या था इसके बाद लाइन के आगे खिसकने में बहुत तेज़ी आई और अगले दो मिनट में मैं मंदिर के अंदर थी। सच में दिल्ली पुलिस का नाम ऐसे ही नहीं फैला। बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ...टाइप वाला।

                                                                     मैंने खींचा है :)

प्रार्थना घर में प्रवेश से पहले सीमेंट की बोरी के खूबसूरत सिले हुए झोले दिये जा रहे थे। कुछ झोले तो बिल्कुल नए थे। उनमें अपनी चप्पलें और जूते डालकर साथ में ही प्रार्थना घर के अंदर ले जाने थे। खैर। मुझसे प्रार्थना नहीं हुई। सो मैं अपना सिर ऊपर उठा-उठा कर ऊपर वाला सोने के रंग का फूल देख रही थी। उस पर कुछ चित्र भी बने थे। मुझे न तो साफ दिखे और न समझ आए। यहाँ लगभग 1300 लोग एक साथ बैठकर अपनी प्रार्थना आसमानी किरदार तक पहुंचा सकते हैं। हम कम संख्या में थे।

यहाँ की सबसे अहम बात यही है कि कहीं भी किसी तरह की मनाही वाली पट्टी नहीं दिखी, मसलन महिलाएं अंदर नहीं जा सकतीं, छोटे कपड़े या जींस पहनकर अंदर आना और प्रार्थना मना है, केवल हिंदुओं के लिए या सिर्फ मुसलमानों के लिए, काले या गोरे का फर्क,...कोई भी आए, किसी भी उम्र का, किसी भी लिंग का, अमीर या गरीब, सभी का यहाँ स्वागत है। कुल मिलाकर यही लगा कि शुक्र यहाँ कोई हिदायत नहीं है और किसी भी तरह का डर भी।

इबादत घर में कई लोग मन लगाकर प्रार्थना भी करते हुए दिखाई दिये। पर मेरे जैसे भी बहुत थे जो हर चीज को निहार रहे थे। कई लोग बाहर अपने अपने फोटो खिंचवाने में व्यस्त थे। हर चेहरा खुश था। मैं भी खुश थी। मुझे बेहद अच्छा लगा कि बिना किसी तामझाम और दिखावे के लोग यहाँ एक जुट होते हुए थोड़ी देर की इबादत में हिस्सा ले रहे हैं। किसी का साझा हिस्सा होगा और किसी का अकेले वाला। मेरे संदर्भ में एक बात गौरतलब करने लायक है। पहली यह कि मैं जहां बैठी थी ठीक उसके ऊपर सूरजमुखी वाला फूल मेरे सिर के ऊपर था और दूसरी खास बात यह रही कि मैं जहां बैठी थी वहाँ से इस्कॉन मंदिर भी दिखाई दे रहा था।  

इस जगह का खास आकर्षण एक कमलनुमा बनावट है जिसमें संगमरमर की 27 पंखुड़ियाँ शामिल हैं। सन् 1953 में इस मंदिर निर्माण के लिए ज़मीन खरीदी गई थी। इसकी कुल जगह 26.6 एकड़ है। इसके वास्तुकार मूलतः ईरान से ताल्लुक रखने वाले फरिबर्ज सहबा हैं और इंजीनियरिंग का कार्य ब्रिटिश फर्म फ्लिंट एंड निल ने किया था। इस बनावट (मंदिर) के आसपास 9 छोटे छोटे तालाब हैं जो देखने में बहुत खूबसूरत लगते हैं और इस जगह के तापमान को संतुलित बनाए रखने में मदद करते हैं। तालाब का पानी नीले रंग का दिखाई देता है जिसे देखकर बहुत अच्छा लगता है। इस मंदिर को बनाने का काम 1980 में शुरू हुआ था और लगभग 6 साल में इसे बनाकर न सिर्फ तैयार किया गया बल्कि आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया।

एक चश्मदीद, जो इस संरचना के बनने के साक्षी थे, ने मुझे बताया- 'हम नए नए तब दिल्ली में रहने आए थे। पास ही सराय जुलैना नाम की जगह में रहते थे। सो यहाँ कभी कभी आ जाया करते थे। बेटे तुम्हें क्या बताएं! इत्ते मोटे मोटे छरिया मंगाए जाते थे। बड़े बड़े पत्थर मंगाए जाते थे। सफ़ेद वाले, सुंदर से। ऐसे ही कोई चीज बनकर तैयार थोड़े ही हो जाती है। आदमी का हाथ न हिले काम क्या खाक होगा। ...जब खुदाई होती थी तब पानी निकल आया करता था।...'

इस धर्म से ताल्लुक रखने और बढ़ाने वाले तीन खास शख्सियत पढ़ने को मिलती हैं। पहले 'बाब(1819-1850), बहाउल्लाह (1817-1892) और अब्दुल बहा (1844-1921)। बहाउल्लाह के नाम पर ही इस धर्म का नाम बहाई पड़ गया। इनके नाम का मतलब ईश्वर का प्रताप बताया जाता है। भारतीय जनगणना 2011 की रपट और आंकड़ों के अनुसार देश में 4572 बहाई धर्म को मानने वाले लोग हैं। यह संख्या कम है फिर भी मुझे यह खयाल तुरंत आता है कि भारत जैसे देश में कितना कुछ समाया हुआ है। यह रोचक और रोमांचक है। किसी से बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि दक्षिण कोरिया में भी इस धर्म के लोगों की संख्या करीब 100 है। 

और भी दिलचस्प बातें इस मंदिर से जुड़ी हैं जिन्हें आप खुद खोजें। मैंने यहाँ अपनी समझ और थोड़ी बहुत जानकारी से आपको यह जतलाने की कोशिश की है कि वास्तव में कोई भी बनावट अपने साथ कई कहानियाँ लेकर चलती हैं। इस बनावट को मशहूर करने वाली मुरीद आँखें ही होती हैं जो इसे हर रोज़ देखने आती है।     


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