उफ्फ़!
एक कहानी भी है:-
परवरिश में पम्पराओं की ऐसी नींव जमाई गई है कि वे ताउम्र पीछा नहीं छोड़तीं। वास्तव में हम बहुत बंटे हुए हैं। अंदर से भी और बाहर से भी। अंदर का बंटवारा हमारे खुद के व्यक्तित्व में गिरगिट के तौर तरीकों का घर कर जाना शामिल है जबकि बाहर का बंटवारा हर तरह से देखने से दिखलाई देगा। जाति के नाम पर, अमीर गरीब के नाम पर, धर्म के नाम पर, गोर-काले के नाम पर...और भी बँटवारे है। आप मुझसे बेहतर जानते और समझते हैं।
हिंदुस्तान में तमाम धर्म के लोगों की आदतें कभी कभी चौंका देती हैं। कभी कभी आपको लगेगा कि सच में ये सब भी कितना अच्छा है। जुरुरी है। हिन्दी फिल्मों में दिखाये जाने वाले अच्छे किरदार अगर धार्मिक न हो तब तक उसकी अच्छाई हमें दिखाई ही नहीं देती। जब तक नायिका सुबह सांझ की आरती न उतार दे तब तक हमारे यानि आम दर्शकों के गले से नीचे पानी नहीं उतरता। मैंने यह धार्मिकता का लिबास औरतों को औढ़ते हुए ज़्यादा देखा है। कम उम्र से बढ़ती उम्र तक। यहाँ तक कि उम्र की आखिरी दहलीज़ तक औरत जब तक धार्मिक न हो तब तक उसके चरित्र की संदिग्धता बनी रहती है।
आपको याद है सन् 1975 में आई फिल्म 'जय संतोषी माँ' जिसके गाने आपने कैसटों को कई बार 'रिप्ले' कर के अपने कानों को सुकून दिया होगा। मुंह से कहा होगा 'वाह! क्या गीत हैं!' इसके बाद आपने अपनी धर्मपत्नी से कहा होगा कि संतोषी माँ की असीम कृपा के लिए तुम्हें भी यह शुक्रवार का व्रत करना शुरू कर देना चाहिए। उसके बाद उस मासूम औरत ने वह महान व्रत करना शुरू किया। उसने अपनी बेटी को भी यह संस्कार करवाना शुरू कर दिया। आज तक यह जमात आसमानी शबाब और पति घर के लिए व्रत कर रही है।
एक कहानी भी है:-
साल में अटरम-शटरम तीजऔर त्योहारों और कई दिनों में भूखी रह जाने वाली औरतें और लड़कियां कहीं विद्रोह न कर दें इसलिए आपने मंगलवार जैसे 'मेल फास्ट' की संकल्पना को अमली जामा पहना दिया। लड़कों को बताया कि (औरत) सीता मैया को अपनी माँ के समान दर्जा देने वाले हनुमान साहब ब्रह्मचारी हैं और बल के देवता हैं। यहीं नहीं उनमें बुद्धि की भी कमी नहीं। अतः आप लोग हफ्ते में इस दिन उपवास रखो तो हनुमान जी की कृपा बिना कर्म करे आपको नसीब हो जाएगी।
चूंकि आदमी अधिक भूख का कष्ट नहीं सह पाते इसलिए आपने 'फल-फूट' खाने की छूट उन्हें मुहैया करवा दी। यह देख कर औरतों ने अपने लिए भी यह रियायत की मांग पुरजोर तरीके से कर दी। आधी अवाम कहीं विद्रोहिणी न बन जाये इस डर से औरतों को भी यह खाने-पीने की छूट मुहैया करवा दी गई। आधी आबादी बहुत खुश हुई और ज़ोर-शोर से यह सब धार्मिक संस्कार करने में जुट गई।
लेकिन देखिये, जरा सुनिए। मोक्ष बहुत बड़ी चीज है। वह आसमानी छतरी है। औरत होकर उसकी कल्पना आसान नहीं। उसके लिए कर्म करना पड़ता है। पहले ज़मीन पर तो अपने कर्म कर के दिखाओ। अरे! कमाल करती हो। पारिवारिक होकर भी तुम अपने मोक्ष का ख्वाब पालकर बैठी हो। पिता, भाई, पति, पुत्र और परिवार की तरक्की की हर तरह की ज़िम्मेदारी तुम पर ही है। इसलिए अपने बारे में क्या सोचती हो! मोक्ष तो उसे ही मिलता है जो दूसरों के लिए करता है और मर जाता है वो भी करते-करते।
इसलिए तुम्हारे लिए कुछ व्रत निश्चित किए जाते हैं। इन्हें करने से बहुत लाभ होंगे।
सोमवार, भगवान शिव का दिन है। वो भोले हैं। जो मँगोगी मिल जाएगा। बेटी को भी बोलो वो करे तो शिव जैसा पति मिलेगा।
मंगलवार, हनुमान जी का है। तुम कर सकती हो यह व्रत। तुम्हें उनकी कृपा प्राप्त होगी।
बुद्धवार, यह बुद्ध ग्रह के लिए है। इसे करने से शादीशुदा ज़िंदगी में खुशहली आ जाएगी।
बृहस्पतिवार, इस दिन को काफी देवताओं ने अपने नाम से नामांकित किया है। विष्णु से लेकर साईं बाबा भी इसी दिन मिल जाएंगे। कुछ लोगों का यह भी मत है कि इस दिन गणेश जी की भी मिल जाति है।
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शुक्रवार, यह संतोषी माँ का दिन है। करोगी तो बहुत कुछ मिलेगा। सुनो खट्टे से परहेज करना। माता को खट्टे से एलर्जी है।
शनिवार, शनि देव की कु-दृष्टि से बचने के लिए यह तो करना ही पड़ेगा। वरना क्या खाक तरक्की होगी!
रविवार, भगवान सूर्य की तेज़ रोशनी के समान कृपा इस दिन प्राप्त की जा सकती है।
सुना है बहुत सी औरतें इस परंपरा को दैवीय आदेश के कारण निभा रही हैं।
कहानी समाप्त
बहुत मुश्किल है विचारों की भीड़ में अपने मन माफिक विचार को खोजना। लोगों की भीड़ जिस तरह पसीने बहा देती है ठीक उसी तरह विचारों की भीड़ गुमशुदा कर देती है। भीड़ का संतुलित विचार नहीं होता। वह हज़ार आँखों के बावजूद अंधी होती है। अमूमन उनमें शामिल लोग एक दूसरे का बिना वजह पीछा कर रहे होते हैं। आप यह जरूर तय कर लें कि कहीं आप उनमें से एक तो नहीं। अगर हाँ तो उस भीड़ के आदेश और परंपरा से बाहर निकलकर सोचें। आपको कई दूसरे रास्ते मिल जाएंगे।
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