अफवाह में क्या गुण पाया जाता है जो वह इतनी दमदार मौजूदगी दर्ज़ करवाती है। आज घर में किसी पुराने क़िले पर बनी डॉक्युमेंट्री देखी जा रही थी। सो बातों बातों में अफवाह जैसा लफ्ज निकला। मुझे यह शब्द बड़ा ही दिलचस्प लगता है। कल ही तो नमक कम होने की अफवाह ने लोगों और शहर को थूक का पानी पिलवा दिया था। गली में किसी लड़की को सिर पर ढेर सारी नमक की थैलियाँ ले जाते देख कर मुझे कुछ खटका तो था पर लगा शायद उनके यहाँ ढाबे का काम चलता होगा। जब घर में टीवी चालू किया तो अफवाह भी खबरों में अपनी खबर सेट कर चुकी थी।
जेहन और ज़र्रे ज़र्रे में तो बस KRSS ही चल रहा है।...रुकिये पूरा समझिए... 'काला रुपया सर्जिकल स्ट्राइक' इसका पूरा नाम है। कमाल है। खुद से ही क्यों सोचने लगे आप! खैर खबरिये चैनलों की भी खबरों के मामले में पांचों उँगलियाँ घी में हैं और सिर भी नए बाबा वाले निर्मित घी में सना हुआ है। पर खबरों में से भी अफवाह की सी बू आती है और आ रही है।
गूगल से लिया है
आप महकिए इन खबरों को। हाँ, यह सच है कि आपके पास जाँचने का समय नहीं है। आप मेहनतकश हैं। सुबह निकल जाते हैं और शाम को लौटते हैं। तब कहाँ से समय लाएँगे! लेकिन अगर आपने ज़रा सा भी समय इन खबरों की बास लेने के लिए नहीं निकाला तो हम एक रोज़ एक अफवाह का शिकार हो जाएंगे। आपको नहीं लगता ये दिखाई जाने वाली सनसनी और ब्रेकिंग न्यूज़ आपके पड़ोसी और आप में बँटवारे की लकीर खींच रही हैं। एक चैनल बदलों तो एक पार्टी विशेष के गुणगान में ही एंकर अपना विशेष रिपोर्ट का क़ीमती वक़्त खर्च कर देते हैं तो दूसरा चैनल दंत कथाओं में खोया पड़ा है जो समझ से परे है। कुछ नागिन के बदले पर पूरा दिन गुजार देते हैं। कुछ चैनल मुद्दे की बात, बड़ा सवाल टाइप के सुंदर शीर्षक से अंत में खुद ही बेतुके नतीजे पर पहुँचते नज़र आते हैं।
इसलिए इन बहुरूपियों और झुट्ठों से बच कर रहिए। एक सटीक जानकारी लीजिये और आगे बढ़ जाइए। चाहे तो बच्चों के साथ उनके कुछ कार्यक्रम देखिये। History या Discovery देखिये...लेकिन इन्हें अपने सिर पर मत हावी होने दीजिये। ये आपकी उट-पटांग खबरों से फीडिंग करने के लिए तरह तरह के कोर्स कर के आए हैं। बाहर आपके साथ बगल में खड़े चेहरे को जब चाहे कुछ चैनल 'वांटेड' में तब्दील कर सकते हैं और आपको भी इसी कतार में लेकर जा सकते हैं। लेकिन आप खयाल रखिएगा कि आप सलमान खान वाले IPS अफसर नहीं बन सकते। साब...फिल्मों में ही ऐसा होता है।
नील साइमन ने बनाया है
इसलिए अफवाह के गणित को खबरों के साथ जोड़ कर भले ही देखिये पर...सूंघ जरूर लीजिये, क्योंकि अफवाह और खबरें जो आजकल हवा में उड़ रही हैं वे आपके दिमाग में सोचने और समझने के अंतराल को कम कर रही हैं। वे भयानक गैस का गुब्बारा बना रही हैं। फूटेगा तो आपको अमिताभ की 'मजबूर' फिल्म घाव का सा अहसास देगा। आप सोचेंगे नहीं तो क्या समझ पाएंगे? एक इल्तिज़ा यह भी है कि आप हिन्दी फिल्मों के पक्के आशिक़ या माशूका होंगे और होंगी। वाजिब है। इसमें बुराई भी नहीं। लेकिन अगर आपका पसंदीदा अभिनेता या अभिनेत्री किसी की तारीफ कर रहे हैं और कर रही हैं तो उस पर भी आँख बंद कर पीछे चप्पू न चलाएं। ...रहिए बाख़बर और होशियार।
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