मैं यह पोस्ट हिन्दी की जानी मानी बेहतरीन अदाकारा भानुरेखा गणेशन के लिए लिख रही हूँ। आज 10 अक्तूबर है और उनका जन्मदिन भी। इत्तिफाक़ से कल मैं उनका चर्चित इंटरव्यू "रोन्देंवू विद सिम्मी गरेवाल" देख रही थी। मुझे लगता है कि इस अदाकारा ने बेहतरीन इंटरव्यू दिया। ऐसी बातचीत अमूमन बहुत कम देखने को मिलती है। खासतौर पर सिने कलाकारों की। इस बातचीत के पूरे तीन भाग हैं जो कि लगभग डेढ़ घंटे में देखे जा सकते हैं।
मैंने जब से फिल्में देखना और समझना शुरू किया है तब से रेखा जैसी अदाकारा को भी थोड़ा बहुत जानने लगी हूँ। घर में फिल्मों का असर रहा है। मेरी बहनें अमूमन गीत गुनगुनाया करती हैं इसलिए मुझे भी इस तरह की न छूटने वाली आदत लगी हुई है। हमें सुर-वुर से लेना देना नहीं है। मेरी माँ राजेश खन्ना की फिल्मों को देखने की बातें आज भी जब तब बता दिया करती हैं। इसलिए मैंने भी कुछ ही सही पर हिन्दी फिल्मों को देखने का अपना एक खुद का तरीका ईज़ाद किया है।
मैंने रेखा की कुछ फिल्में देखी हैं जो मुझे बहुत गजब की लगती हैं। मैं इन फिल्मों के गाने घंटों गुनगुना सकती हूँ और कई दृश्यों पर काफी कुछ बोल भी सकती हूँ। सन् 1978 में आई फिल्म "घर" में इनके अभिनय को काफी सराहा गया और रेखा उस फिल्म से एक बेहतरीन अदाकारा साबित हुईं। आप सभी को पता है कि इस फिल्म की कहानी में एक शादीशुदा जोड़ा है। विकास और आरती नाम का। एक भयानक रात में आरती के साथ खौफनाक हादसा हो जाता है। चार लोग मिलकर आरती का बलात्कार कर देते हैं। इस हादसे के बाद आरती मानसिक, शारीरिक, सामाजिक आघात से त्रस्त और सम्बन्धों से डर जाने वाली औरत में तब्दील हो जाती है। आप तमाम तरह के अखबारों और पत्रिकाओं को उठकर देख लीजिये। आपको उनमें यही मिलेगा कि रेखा ने दमदार अभिनय से उस भूमिका को निभाया था।
मेरी दीदी बताती है- "जब मैंने वो फिल्म देखी थी तब उस सीन के बाद मुझे भी सदमा जैसा ही लगा था। रेखा के चिल्लाने से लेकर अजीब से बिहेव करने तक, बहुत अजीब सी घबराहट महसूस हुई थी।...फिल्म के गाने बहुत अच्छे थे।...बंदी ने काम बहुत अच्छा किया। ऐसा लगता है ये रोल उसी के लिए था।..."
नज़र उठाएँ तो हमें हर तरफ बलात्कार की खबरें सुनाई देती हैं और अचानक कानों और नज़रों से गायब हो जाती हैं। लेकिन उन औरतों के दर्द को न तो सरकार समझती है, न उसके खुद के लोग और न यह महान संस्कृति का समाज। रेखा यहाँ अपने अभिनय से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाती हैं।
इसी तरह फिल्म "उमराव जान(1981)" की बात कर ली जाये या फिर फिल्म "खूबसूरत(1980)" की। दोनों ही गज़ब की फिल्में हैं। दोनों में उनका फिर से बेहतरीन काम है। हर सीन में रेखा को ही देखा जा सकता है। नृत्य से लेकर उनकी अदायगी के जौहर भी नज़र आते हैं। अगर मैं गलत हूँ तो मुझे इसका अफसोस भी नहीं। आप खुद ही देख लीजिये कि दोनों ही फिल्मों का रिमेक भी हुआ और दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधें मुंह गिरीं। दोनों फिल्मों का नाम लीजिये आपको सिर्फ रेखा ही याद आएंगी।
हाल ही में उन पर लिखी किताब भी आई है- "रेखा-दि अंटोल्ड स्टोरी"...यह एक जीवनी है। अभी तक मैंने यह किताब नहीं पढ़ी। लेकिन मैं फिर से इस किताब के हवाले से उनके निजी जीवन के किस्से सोशल साइट्स पर पढ़ रही हूँ। मुझे हैरानी है कि लोग बहुत अजीब तरीके से उनके बारे में लिख रहे हैं कि उनकी ज़िंदगी में उनके किस किस से संबंध रहे। हद है इस समाज के लोगों की। मैं यही चाहूंगी की रेखा इस किताब को पढ़ें ही न। क्या पता उनको निराशा हाथ लगे। उन्हों ने सिम्मी गरेवाल को दिये अपने इंटरव्यू में कहा था कि उनकी स्कूली पढ़ाई क्लास 9 में ही छूट गई थी। उसके बाद से अपने अभी तक के जीवन में उन्हों ने न तो कोई किताब पढ़ी है और न ही वह कोई अखबार पढ़ती हैं। इस तरह से इस तरह की अफवाहों और खबरों से बेखबर रहती हैं।
एक और अजीब बात जिसको बार बार उनसे जोड़ कर उछाली जाती है। उन्हें किसी भी आम हिंदुस्तानी महिला की तरह सजने और सँवरने का शौक है। वह ऐसी रहती भी हैं। वो बकायदा सिंदूर भी लगाती हैं। इसके चलते उनका नाम बाकी कलाकारों से जोड़ा जाता है। यह बहुत अजीब बात है। वो जैसे रहना चाहती हैं वो वैसे रहती हैं। इतना ही नहीं उनके लिए उनके खुद के साथी कलाकारों ने बेहद आपत्ति जनक बयान भी दिये हैं। लेकिन रेखा इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देतीं।
आप लोग यह कहेंगे कि वे एक सिनेतारिका हैं। इसलिए यह वाजिब है कि उनकी जिंदगी में तांक झांक की जाये। यह सभी के साथ होता है। ...पता नहीं कि आपकी बात सही या गलत। पर मुझे लगता है कि अपने हिन्दी कलाकारों को उनके काम के जरिये आंका जाये न कि उनकी निजी ज़िंदगी में हुई उथल पुथल से।
यह विचार मैंने किसी फैन के रूप में नहीं लिखे। मुझे उनकी कुछ फिल्में बेहतरीन लगीं। उनका काम अच्छा लगा सो लिखा। आम दर्शक के लिहाज से लिखा है। उनके जीवन में छींटाकशी करने वाले, रस लेने वाले और घटिया बयान देने वाले लोगों की मानसिकता की जांच की जाये तो बहुत से लोग आपको अपने आसपास मिल जाएँगे जो अपने मुंह में औरतों को नकारात्मक बताने का थूक लिए चलते हैं।
Bahot khub likha hai, mere papa kehte hai insan apne karmo se apne jivan me kiye gae sangharsh se jana jata hai, par ye to bharat hai yaha to log aurat ka charitr useke kapdhe khane pine ya kisi ke sath hasne bolne Se hi laga lete hai, jinki mansikta me aurat ke liye acha sochna nhi hai unke liye aurat kon hai kya sab ek jesa hi hai. yaha koi kisi ke karrmo ko nhi dekhta uske niji jivan se hi uske bare me apna apna anzariya samjhane lagte hai.....
ReplyDeletemene ye kitab "रेखा-दि अंटोल्ड स्टोरी" nhi padhi par ab padhne ki icha bhi nhi hai, jo bataya hai tumne wo roj yaha logo ki mansikta dekhne or padhne ko milti hai,
शुक्रिया...दिलचस्प यह है कि रेखा कोई अखबार और किताब खुद ही नहीं पढ़तीं।
ReplyDeleteदूसरी बात यह है कि उनकी अदाकारी बहुत उम्दा है। यही काफी है हम लोगों के लिए।