Tuesday, 13 September 2016

‘साली’ उसके लिए नॉर्मल गाली थी


फोन जब (मैंने) उठाया तो हमेशा की तरह उसने नॉर्मल गाली मेरे कानों तक पहुंचा दी। मुझे हल्का गुस्सा आया। मैंने कहा- “यह क्या बकवास है? तुम्हारी भाषा सच में काफी बिगड़ गई है।“

उसे मुझ पर हंसी आई। हँसते हुए ही बोली- “अबे साली! हरिच्चंद्र बाबा से ही मिल के नीचे आई है। तू तो जानती ही है कि मेरी आदत है बात बात में साली कहने की। तू गुस्सा न हुआ कर। मैं तो बिगड़ी न थी। बस ये साला कलजुग है। इसी ने बानी खराब कर दी है। घर में जब आदमी गाली देते हैं तो अपने आप सीख मिल जाती है।“

मैंने बीच में टोकते हुए कहा- “यही चीजें सीखती है? कुछ और भी सीख लिया कर।“

वो तुरंत हँसते हुए फिर बोली- “अच्छा ये सब छोड़। फोन में पैसे न हैं। भाई की शादी है 23 को। आंटी अंकल सबको बोल दीयो आ जाएँ। तू भी मर लियो समझी।“

मैंने वही चोचला फिर बोला जो शहरों के लोगों के खून में बहता है- “बिना शादी के कार्ड के मेरे घर वाले कहीं नहीं जाते और वैसे भी मैं कहाँ शादियों में जाया करती हूँ। सॉरी...मैं तो नहीं आ पाऊँगी।“

“...ज़ादी तू भी मुझे परेशान कर अब!”- इतना कहकर उसने फोन काट दिया।

अगले दिन जून की 18 तारीख को वो चेक की कमीज और नीली जींस में मेरे घर में चाय पी रही थी। वो माँ से बोली- “आंटी मुझे पता है। आप शादी ब्याह में न जाओ कहीं। लेकिन इसे भेज देना। तुम जानो हो मेरा थोड़ा हाथ बंटा देगी। शादी का लाल कार्ड माँ को थमाते हुए वह झट से उठी और निकल गई।“

बहरहाल मैं शादी में गई। अच्छी हरियाणवी शादी थी। सब कुछ बेहद उम्दा। खान पान से लेकर हर चीज में दम था। उसे फुर्सत नहीं थी मेरी तरफ देखने की। वह बस जी जी कर अंदर बाहर दौड़ रही थी। कोई नहीं कह सकता था कि वह विज्ञान की उम्दा विद्यार्थी थी।

मुझे कुर्सी पर अकेले बैठे देखकर वह भागते हुए मेरे पास आई और बोली- “लाड़ली! कुछ खा पी लियो। देख रही है न कमीनी फुर्सत न है।“

मैंने देखा कि वह हाँफ रही थी फिर भी हंस रही थी। शादी में झगड़े हुए तब उसने दोनों पार्टी को बड़े अच्छे समझा बूझा लिया। बस जाके वह यह बोली- “तुम दोनों बूढ़ों की तरह लड़ रहे हो। बताओ जवानों की तरह कौन नाचेगा!”

फिर मेरे पास आकर आराम से बैठकर वक़्त बिताया। कुछ बोलती भी रही- “घर में चुनाव हो तो कोई किसी का नहीं रहता। फिर बचने के लिए ज़ुबान में मिशरी ही घोलनी पड़ती है।“

मैंने कहा-“मैं समझी नहीं।“

वो हँसते हुए बोली-“ तू रहने दे साली।“

मेरी उससे आखिरी बात शादी के लगभग 15 या 16 दिनों के बाद हुई। वह खुश थी। उसने गोलगप्पा मुंह में डालते हुए चबाया या खाया। फिर बोली- “मैं तो मर गई हूँ।“

मैंने फिर कहा- “क्या बकवास है!”

वह बोली- “बकवास न है। तू तो कुछ समझे ही न है।“ फिर हम खूब हंसे।...कई दिनों बाद,

मुझे नहीं पता था कि मेरी मुलाकात सदमे से होने वाली है।...

वह मर चुकी थी। इस घटना को काफी समय बीत गया था।

मुझे नहीं पता कि वह कैसे मरी। उसके छोटे भाई ने मुझे बताया कि दीदी ने जहर खा लिया था। मुंह से सफ़ेद झाग निकल रहा था। मैं तब से उसके घर नहीं गई।  

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