Thursday, 1 September 2016

आज का शब्द- घुटन

...कि घुटन में 'घटना' छुप कर रहती है। जब एक एक सांस भारी सी लगे, जब सीने में दर्द हो, जब दिमाग में घिन्नी घूम रही हो, जब पैरों ने ज़मीन और ज़मीर पर टिकने से इंकार कर दिया हो, जब कान सुनने में आना कानी करने लगें, जब आँखों में नमकीन पसीना जबर्दस्ती घुल जाये और आँखें जलाने लगे, जब महसूस के नाम पर कुछ महसूस न हो, जब नाक से जीवन बंद हो जाये...तब वास्तव में समझिए कि आप घुटन के शिकार हो गए हैं। घुटन-घटना एक हादसा है जो निजता की परिधि में आता है और उसे तोड़कर मानसिक आराम में खलल डालता है।

हवा से हल्की होती है घुटन। रसोईघर में लगने वाली छोंक के उड़ते हुए धुएँ से भी हल्की। लेकिन कई बार  मजदूर के पसीने से भी भारी होती है। दफ्तर की न खत्म होने वाली फाइलों से भी वज़नदार घुटन उम्रदराज हो जाती है।

लेकिन वक़्त की सक्रियता सब संभाल लेती है। छोंक का महकदार धूँआ भी खत्म हो जाता है। ठंडी हवा से पसीना भी सूख जाता है। दफ्तर में भी रविवार दस्तक दे ही देता है।

घुटन का अंत सामान्य रोज़मर्रा में उत्सव है। घुटन को 'घटना' ही पड़ता है।

No comments:

Post a Comment

21 बरस की बाली उमर को सलाम, लेकिन

  दो साल पहले प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली लड़की से मेरी बातचीत बस में सफ़र के दौरान शुरू हुई थी। शाम को काम से थकी हारी वह मुझे बस स्टॉप पर मिल...